Friday, February 27, 2009

गांधी की यादें सहेज कर भारत में लाना चाहिए ..

मुझे तो यह सुन कर काफी खुसी और शुकून मिल रहा है की सरकार ने गांधी जी की निशानियों को भारत लाने का फैशाला किया है । ये देश की धरोहर है , हाथ से नही निकलना चाहिए । इन धरोहरों में गांधी जी का मेटल की किनारी वाला चश्मा, जेब घड़ी और कुछ बर्तन आदि पांच चीजें शामिल हैं।

Thursday, February 26, 2009

...... और आजादी चाहिए

..... और आजादी चाहिये ..... इतनी कम पड़ रही है ... सबको आजादी नही मिली ..... सम्मान से जीने की आजादी तो बिल्कुल नही मिली । राम राज्य का सपना साकार नही हुआ । विदेशी ताकतों की जगह अब देशी लुटेरे ही जनता का हक़ मार रहे है ..... ये अधूरी आजादी है .... हमें पुरी चाहिए । धीरे -धीरे ही सही लेकिन चाहिए ....चुप नही बैठने वाले ....लड़ कर लेगे ।
बच्चे थे तो सोचते थे .... लड्डू खाना ही आजादी है ...... आज सोचते है काश सबको रोटी मिलती ..... आजादी लड्डू से नही ,रोटी से मिलेगी
रोटी पाना आज भी ...... गांधी के राज में दुर्लभ है ...... आम आदमी कहने को तो रास्त्रपति और प्रधानमन्त्री बन सकता है ..... लेकिन सिर्फ़ कागज के टुकडों पर ...... हकीकत कौन नही जानता ..... सत्ता पर किन लोगों का कब्जा है ......
देश की बुनियाद में ही कुछ गड़बड़ है .... सोचना होगा .......

Wednesday, February 25, 2009

स्लम और स्लम डॉग

स्ल्मदाग की किस्मत तो चमक गई .... उसे ८ आस्कर अवार्ड मिले । लेकिन यह पिक्चर कुछ सवाल छोड़ गई है .....जिसका निदान ढूढ़ना इतना आसान नही है । उन झुगियों की किस्मत कब चमकेगी .... जहाँ नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ता है। भारतीय जनगणना 2001 के आंकड़ों के मुताबिक शहरी भारतीयों में से करीब 15 फीसदी लोग (संख्या में करीब 3।3 करोड़) झुग्गी बस्तियों में रहते हैं। हालांकि कुछ स्वतंत्र अध्ययनों में यह आंकड़ा 22 फीसदी तक बताया गया है। जनगणना के मुताबिक तुलनात्मक आंकड़ा समूचे देश के लिए 4 फीसदी ज्यादा यानी या 4।26 करोड़ है। देश में सर्वाधिक आबादी वाले टॉप 100 शहरों में 2।9 करोड़ झुग्गीवासी बसते हैं। मुंबई में हर दूसरा, कोलकाता में हर तीसरा और दिल्ली में हर 10वां शख्स झुग्गी में रहता है। ठाणे शहर, चेन्नई, नागपुर, उत्तरी 24 परगना के शहरी इलाके, हैदराबाद, पुणे और रंगारेड्डी के शहरी क्षेत्र ऐसे 10 शीर्ष शहर हैं जहां देश में झुग्गवासियों की सबसे ज्यादा तादाद है। दुर्भाग्य की बात है कि भारत में झुग्गी बस्ती महानगर या किसी बड़े शहर तक ही सीमित नहीं है। देश के 640 से ज्यादा शहरों और कस्बों में झुग्गी में बसने वाली आबादी रहती है। अगर आप शहर की कुल आबादी के अनुपात में झुग्गीवासियों की संख्या रखते हैं तो मुंबई (53 फीसदी) के बाद हरियाणा का फरीदाबाद (42 फीसदी), आंध्र प्रदेश का अनंतपुर (36 फीसदी), गंटूर(32 फीसदी), नेल्लोर (31.8 फीसदी) और विजयवाड़ा (30.7 फीसदी), पश्चिम बंगाल का धूपगिरि (33.5 फीसदी) और कोलकाता (30 फीसदी), उत्तर प्रदेश का मेरठ (35 फीसदी) और मेघालय का शिलॉन्ग (31.8 फीसदी) इस मोर्चे पर देश के टॉप 10 शहरों में शामिल हैं। और झुग्गी की परिभाषा क्या है? भारत की जनगणना 2001 के मुताबिक जहां बेहद अस्तव्यस्त तरीके से बने आवासों में कम से कम 300 की आबादी या करीब 60-70 परिवार रहते हैं उन्हें स्लम एक्ट समेत किसी भी कानून में झुग्गी कहा जाता है। ऐसे इलाकों में स्वच्छता का ध्यान नहीं रखा जाता, बुनियादी ढांचा अपर्याप्त होता है और पेयजल तथा शौचालय की सही व्यवस्था नहीं होती। हालांकि झुग्गी बस्ती में रहने वाले लोग उपभोक्ताओं की फेहरिस्त में सबसे नीचे (बिलो द पिरामिड या बीओपी) गिने जाते हैं लेकिन उनकी भारी संख्या उन्हें देश में सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बनाती है। नई दिल्ली स्थित इंडिकस एनालिटिक्स के एक विश्लेषण के मुताबिक शहरी भारत में बीओपी बाजार 6.5 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का है।इन झुगियों में उजाला कभी आता ही नही .....बच्चे भूख से बिलगते रहते है । इस फ़िल्म में तो जमाल को नोलेज की खान बताया गया है और वह अपने अनुभव से सभी सवालों का जबाब भी देता है लेकिन रिअल लाइफ में ऐसा नही होता ......झुगियों के बच्चे स्कूल नही जाते ..... कूड़ा बीनते रहते है .... ग़लत हाथों में पड़ कर शोषित होते है.... क्या स्लाम्दाग के निर्माता , निर्देशक या कलाकारों को इस फ़िल्म की कमाई में से कुछ पैसा झुगियों के विकास पर नही खर्च करना चाहिए । क्या हमारी सरकार को इस सम्बन्ध में ठोस निति नही बनानी चाहिए ?... इन सभी सवालों के जबाब कौन देगा ?एक बात तो हमें अमझ लेनी चाहिए की भले हम चाँद पर पहुँच जाए लेकिन रिअल विकास तभी होगा जब स्लम एरिया के लोग खुशहाल होगे.

Monday, February 23, 2009

देश को सबसे ज्यादा खतरा बंगलादेशी कीडों से है ...

हम तो भाई उनसे तंग आ गए है । हर गली चौराहे में मिल जाते है । आतंरिक शान्ति के लिए खतरा बन गए है । आतंकवादी घटनाओं में भी शामिल है । चोरी चमारी तो उनकी आदत बन गई है । ऐसा हम तो सोचते है ही ,सरकार और कोर्ट का भी यही मानना है । पर हमारी सरकार ........ उसपर तो कमेन्ट करना मुर्खता है । जानते हुए छोटे घाव को कैसे नासूर बनाया जाता है ? यह सीखना हो तो कोई इसे सरकार से सीखे ।सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है की हरेक भारतीय के पास पहचान पत्र होना चाहिए । जिससे की उनकी नागरिकता पहचानी जा सके । सीमावर्ती इलाकों में तो इसे अनिवार्य कर देना चाहिए । कोर्ट ने सरकार से जबाब भी माँगा ......पर वह लगता है सो गई है । यह नासूर इस कंट्री को ही तबाह कर देगा जिस तरह स्पेन का नासूर नेपोलियन को और साउथ का नासूर औरंगजेब को बरबाद कर दिया । समय रहते चेत जाने में ही समझदारी है ।ऐसे लोगो को भी सबक सिखाया जाय जो बिना सोचे समझे बंगालादेशिओं को नौकर बना लेते है । कैम्पों में अबैध बंगालादेशिओं को वे समान उपलब्ध है जो यहाँ के अधिकाँश नागरिकों को भी नही है । रासन कार्ड , नौकरी , शिक्षा का अधिकार देश के नागरिकों को है न की अबैध नागरिकों को ।बन्ग्लादेशिओं को पनाह देने में पश्चिम बंगाल और असाम का बड़ा हाथ है । वह वे पहचान में ही नही आते की कौन देशी है और कौन विदेशी ...... नेता अपनी नेतागिरी से बाज नही आते । एक दिन देश की जनता उनसे सवाल जरुर करेगी । तब उन्हें बचाने के लिए कोई बंगलादेशी नही आयेगा

Sunday, February 22, 2009

हरिता देयोल कौर थी ?

आपको हम दो आप्सन देते है .......१-- भारत की पहली महिला न्यायाधीश२--भारत की पहली महिला पायलटआप कुछ और जानते है तो जरुर लिखे । हम आपके आभारी रहेंगे ।

Friday, February 20, 2009

सोमनाथ का शाप ......

हकदार नही है .....आप जनता को मुर्ख बना रहे है .....आप उनका अपमान कर रहे है
ये शाप है व्यथित लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी का
आज संसद लोकतंत्र के मन्दिर के रूप में अपनी पहचान खोता जा रहा है ....लगता है ....वहां मछली का बाजार लगा हैगंभीर चर्चा की बात तो छोडिये ,किसी भी तरह की चर्चा होना मुस्किल हो गया है
हमारे जन प्रतिनिधि कैमरे के सामने कुतों की भाँती भौकने का कोई भी अवसर नही छोड़ते
सोमनाथ जी ने सही कहा .....हंगामा करने वालों को एक फूटी कौडी भी नही देना चाहिए
.....पर हमारे आदरणीय सांसदों को इससे क्या लेना .....वे तो कसम खाए बैठे है ....हम तो हुडदंग करेगे ही ...
संसद से सम्बंधित कोई नियम कानून बनने के सवाल पर तो उनकी जबान बंद हो जाती है ........
ऐसे हम और आप जैसे लोग सोमनाथ जी की तरह व्यथित हो अपनी भडास ही निकाल सकते है ......

Wednesday, February 18, 2009

पाकिस्तान का स्विट्जरलैंड...

स्वात घाटी को पाकिस्तान का स्विट्जरलैंड कहा जाता रहा है, लेकिन यह सुंदर जगह पिछले दो सालों से संसार की कुछ सबसे घृणित घटनाओं और तस्वीरों का सबब बनी हुई है। स्वात घाटी की कुल 15 लाख आबादी में 5 लाख लोग जान बचाने के लिए शरणार्थी बन कर कहीं और जा बसे हैं। यह वहां की दयनीय स्थिति को दिखता है। पाकिस्तान सरकार ने स्वात में उनकी मर्जी का कानून लागू करने पर सहमति जता दी है। शरियत का वही कानून जो लड़कियों को स्कूल तो क्या घर से केले निकलने का अधिकार तक नहीं देता है।
चौराहे पर रोज एक लाश टंगी नजर आती है। चारो ओर सन्नाटा पसरा नजर आता है। तालिबानी फिरौती के लिए किसी को भी टांग ले जाते है. को-एड और गर्ल्स स्कूलों के खिलाफ करीब महीने भर चली तथाकथित शरियत मुहिम में जब ऐसे कई स्कूल ढहा दिए गए तो लड़कियों का स्कूल जाना तो ऐसे ही बंद हो गया । ऐसे स्विताजर लैंड को देख कर मन व्यथित हो उठता है। की लोग चाहे तो स्वर्ग को भी नरक बना सकते है। इसका प्रमाण हमें स्वात में मिल जाता है ।

मार दो फाइनल पंच......

भारत में बनी दो और फिल्में 'स्माइल पिंकी' और 'द फाइनल इंच' शॉर्ट डॉक्युमेंटरी फिल्म कैटिगरी में प्रतिष्ठित ऑस्कर अवॉर्ड की दौड़ में हैं। इन दोनों ही फिल्मों की शूटिंग उत्तर प्रदेश में हुई है। पहली डॉक्युमेंटरी फिल्म 'स्माइल पिंकी' 39 मिनट की है। भोजपुरी और हिंदी में बनी यह फिल्म मिर्जापुर की 6 साल की गरीब लड़की पिंकी के इर्द-गिर्द घूमती है। कटे होठों के कारण वह स्कूल जाने और सहपाठियों के साथ घुलने-मिलने से कतराती है। सोशल वर्कर पंकज पिंकी को उस अस्पताल तक पहुंचाता है, जहां कटे होठों की सर्जरी मुफ्त होती है। इससे पता चलता है की हमारा सिनिमा ग्लोबल हो गया है । अब अच्छी फिल्में बनने की उम्मीद जागी है .
फाइनल इंच पोलियो पर आधारित कहानी है.इसका प्रमुख किरदार गुलजार है। उसके दोनों पैर पोलियो से बेकार है .लेकिन वह हतोत्साहित नही है ,जीने और कुछ करने की लालसा रखता है । इस फ़िल्म में दिखलाया गया है की भारत में पोलियो की समाप्ति के लिए क्या प्रयास किए जा रहे है । उम्मीद है स्लम दाग के अलावा ये दोनों फिल्म आस्कर में जरुर कामयाबी हासिल करेगी ।
अफ्शोश तब होता है जब मै अपने कई मित्रों से बात करता हूँ और उन्हें इन फिल्मों के बारे में अनजान पाता हूँ । वे नाम भी नही जानते है । लेकिन यही फिल्म भारत की सही तस्वीर प्रस्तुत कराती है।

फिर वही राग .....

पाकिस्तान ने लगातार ना-नुकुर, विलंब और भ्रामक बयानों के बाद 9 फरवरी को रक्षा समन्वय समिति की बैठक बुलाई और इस पर गौर फरमाया कि अपनी संघीय जांच एजेंसी (एफबीआई) की रिपोर्ट के आधार पर केस दर्ज किया जाना चाहिए और इस दिशा में आगे पड़ताल की जानी चाहिए। हमले के पहले हफ्ते में पाकिस्तान ने कहा कि आईएसआई के डायरेक्टर जनरल को जांच में सहयोग के लिए भारत भेज रहे हैं, लेकिन बाद में वह इससे साफ मुकर गया.मुहम्मद अली जिन्ना ने मजहबी पहचान के आधार पर द्विराष्ट्र सिद्धांत को जन्म दिया और पाकिस्तान अस्तित्व में आ गया। अब द्विरस्ट्र सीधांत के कारण पाक खुद घिर गया है. पाकिस्तान की ढुलमुल नीति की ईमानदार समीक्षा करनी चाहिए.

Sunday, February 15, 2009

Hindi Blogs. Com - हिन्दी चिट्ठों की जीवनधारा

राजनीति में रैंगिंग

स्कूलों कालेजों में तो रैंगिंग सबने सुना है .सुप्रीम कोर्ट ने रैंगिंग करने वालों को संस्थानों से बाहर करने का रास्ता भी दिखलाया है .बहुत अच्छी बात है लेकिन राजनीति में होने वाली रैंगिंग के लिए भी कुछ करना होगा .वह तो यूथ के लिए जगह ही नही है .यूथ को बाहर का रास्ता दिखला दिया जाता है .उन्हें बूढें नेताओं द्वारा जो चल नही सकते ,बोल नही सकते ,प्रताडित किया जाता है .उनके लिए भी सेवा निवृति की आयु होनी चाहिए .तब जाकर यूथ को मौका मिलेगा .देश की तरक्की होगी .देश को अब नए नेतृत्व की जरुरत है .तभी जाकर राजनीति से रैंगिंग का खात्मा हो सकेगा .इसके लिए युवा वर्ग को आगे आना होगा .

Saturday, February 14, 2009

एक सपना

बहुत सुंदर
एक सपना देखा
सपने में
आकाश दिखा
बादल दिखे
पंछी दिखे
उनके साथ
तुम दिखे
हवा से
बातें करते हुए
मस्ती से
चलते हुए
अनजान
राहों पर
कुछ लोग दिखे
उनके साथ
तुम दिखे
तेरा चहकना
पंछियों जैसा
तेरा चमकना
चाँद जैसा
तेरा महकना
खुशबू जैसा
तेरा गुनगुनाना
भौरें जैसा
सब देखा
बहुत सुंदर
एक सपना देखा

Friday, February 13, 2009

मै आप सभी दोस्तों के साथ अपना अनुभव बाँट रहा हूँ .आपने ही मेरा हौसला बढाया है .मै आपका आभारी हूँ ।

कुछ सोच कर निकला हूँ
अब और नही
अपने तरीके से रहना है
जीना है
फिर भी ,सोचता हूँ
जिंदगी एक ही ट्रैक पर रहे
उसमे भी मजा नही
कुछ अलग होना चाहिए
पर ऐसा नही की
जिंदगी रुक ही जाए
अब और नही
कुछ सोच कर निकला हूँ

मेरी पतंग

मेरी पतंग कट गई है
खोज रहा हूँ
मिलतीही नही
अब कटे माझें को
समेट रहा हूँ
परअब उसका
क्या मोल
आसमान में उड़ती
जींदगी गुम
हो गई है
खोज रहा हूँ
मिलती ही नही

Thursday, February 12, 2009

विचित्र आदमी

मै भी एक विचित्र आदमी हूँ .अपने को जान रहा हूँ। परेशान हो रहा हूँ । कोई राह नही दिखती

सोचता हूँ ,विचित्रता क्या है .यह कितनी गहरी है .कोई नाम नही कोई पहचान नही ।

नही समझ पाता। खोज रहा हूँ ,कई दिनों से अंजुरी भर रोशनी । वो भी मुअस्सर नही ।

सारा ताना बाना अपने से ही छिपाता हूँ .बड़ा ही विचित्र आदमी हूँ ।

जानता हूँ चरित्र की जटिलता मुझमे नही है । साफ हूँ । फिर भी अपने से अनजान हूँ ।

विचित्र परिस्थितियों में ओस की बूंदों की तरह लुढ़कता रहा हूँ .निजपन का अभाव है ।

भय नही ,छल नही ,फिर भी विचित्र हूँ .ख़ुद से संवाद में माहिर हूँ ,पर प्रतिरोध में नही ।

अपने में निखर चाहता हूँ .मिसाल खड़ी करना चाहता हूँ ,पर लुदकाव जाता ही नही।

बेचैनी है ,वह भी विचित्र है।

सोचता हूँ ,जीवन एक बार मिलता है । उमर निकल जायेगी तब मेरी सतरंगी इच्छाओं का

क्या होगा ।

इसी सोच में समय बरबाद करता हूँ .बड़ा विचित्र आदमी हूँ।

Monday, February 9, 2009

Beauty


जीत की खुशी कैसी होती है .आजतक मुझे नसीब नही .अभी अधूरी खुशियाँ ही मिली है .जीत की खुशी नही .उसका अभी इंतजार है.वो दिन कब आयेगा पता नही .

जरुरत नही

छायादार पेड़

अब जरुरत नही

हाथ ही मेरा प्रहार
नही छीनता किसी का आहार
गर्मियो के दिन
बीत गए पंखे बिन
शीतल जल
अब जरुरत नही