Sunday, December 26, 2010

इक जाम फुर्सत में .... {गजल} सन्तोष कुमार "प्यासा"

तू परछाई है मेरी, तो कभी मुझे भी दिखाई दिया कर
ऐ जिंदगी ! कभी तो इक जाम फुर्सत में मेरे संग पिया कर

मै भी इन्सान हूँ, मेरे भी दिल में बसता है खुदा
मेरी नहीं तो न सही, कम से कम उसकी तो क़द्र किया कर

इनायत समझ कर तुझको अबतलक जीता रहा हूँ मै
मिटा कर क़ज़ा के फासले, मै तुझमे जियूं तू मुझमे जिया कर

मेरा क्या है ? मै तो दीवाना हूँ इश्क-ऐ-वतन में फनाह हो जाऊंगा
वतन पे मिटने वालों की न जोर आजमाइश लिया कर

Thursday, November 18, 2010

स्वर्ग की परिकल्पना...

भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में गाँधी का आगमन एक नविन घटना के रूप में देखा जाता है । गांधीजी के सपनों के भारत में पृथ्वी पर एक ऐसे स्वर्ग की परिकल्पना है जहाँ कोई न किसी का गुलाम होगा और न ही किसी दुसरे पर निर्भर होगा ।
मेरे सपनों के भारत में इस आशय को प्रकट करते हुए वो लिखते भी है ......
'' मै ऐसे भारत के लिए कोशिश करूँगा जिसमे उच्च और निम्न वर्गों का भेद नही होगा । ऐसे भारत में अस्पृश्यता का कोई अस्तित्व नही होगा । शराब और दूसरी नशीली चीजों के अभिशाप के लिए कोई स्थान नही होगा ...... उसमे महिलाओं को वही अधिकार होगे जो पुरुषों को होगे । न तो हम किसी का शोषण करेगे और न ही अपना शोषण होने देगे ।

Monday, May 31, 2010

क्यूकी बाप भी कभी बेटा था ......संतोष कुमार "प्यासा"

एक जमाना था जब लड़के अपने घर के बड़े बुजुर्गों का कहना सम्मान करते थे उनका कहा मानते थे ! कोई अपने पिता से आंख मिलाकर बात भी नहीं करता था ! उस समय कोई अपने पिता के सामने कुर्सी या पलंग पर भी नहीं बैठता था ! तब प्यार जैसी बात को अपने बड़े बुजुर्गों से बंटाना "बिल्ली के गले में घंटी बाधने" जैसा था ! प्रेम-प्रसंग तो सदियों से चला आ रहा है ! लेकिन पहले के प्रेम में मर्यादा थी ! उस समय यदि किसी के पिता को पता चल जाता था की उसका बेटा या बेटी किसी से नैन लड़ाते( प्रेम करते) घूम रहे है तो समझों की उस लड़के या लड़की की शामत आ गई ! पिता गुस्से में लाल पीला हो जाता था ! तरह तरह की बातें उसके दिमाग में गूंजने लगती थी ! मन ही मन सोंचता था "समाज में मेरी कितनी इज्ज़त है, नालायक की वजह से अब सर उठा कर भी नहीं चल सकता, सीधे मुह जो लोग बात करते डरते थे अब वही मुह पर हजारों बातें सुनाएगे, मेरी इज्ज़त को मिट्टी में मिला दिया इसने" कही ऐसा करने वाली लड़की होती तो उसके हाँथ पैर तोड़ दिए जाते थे, घर से निकलना बंद कर दिया जाता था ! साथ ही लड़के या लड़की को खुद शर्म महसूस होती थी ! लड़कियों का तो गली मोहल्ले से निकलना मुश्किल हो जाता था ! लोफ़र पार्टी तरह तरह की फब्ती कसते थे ! कहते थे " देखो तो इशक लड़ाती फिरती है, जवानी संभाले नहीं संभलती...." कभी कभी तो बेचारी को घर की इज्ज़त और कायली के कारण आत्महत्या भी करनी पड़ जाती थी ! इसके विपरीत कुछ लड़के अपने प्यार को बुजुर्गों से बाटना बुरा नहीं समझते थे ! ऐसे विचार के युवकों को उस समय बद्त्मीच और संस्कारहीन समझा जाता था ! यहाँ तक की उस समय फ़िल्मी गाना गाना भी असभ्य समझा जाता था ! समय के साथ बाप और बेटों के विचारों में बदलाव आया ! अब बेटा अपने प्यार के बारे में अपने पिता से आसानी से कहता है और पिता सरलता से सुनता है ! समय ने बेटियों को भी इतना सक्षम बना दिया है की वे भी अब अपने मन की बात अपने पिता से बेहिचक कह सकती है ! वर्तमान समय में पिताओं की भूमिका "शादी के कार्ड छपवाने और मैरिज हाल बुक करने तक ही रह गई है !" अब बेटा सीधे एक लड़के को घर में लाता है और कहता है "डैड मै इससे प्यार करता हूँ !" यह सुनकर अब कोई पिता गुस्से से लाल पीला नहीं होता और न ही वह समाज के बारे में सोंचता है ! क्युकी उसे पता है की आज हर दूसरे घर में यही हो रहा है ! पिता मन ही मन सोंचता है "अच्छा हुआ कम से कम एक जिम्मेवारी तो ख़त्म हुई !अब माता पिताओं को "बहु और दामाद" ढूँढने में ज्यादा दिक्कत नहीं होती ! शायद ऐसा समय के बदलाव के कारण हुआ है ! समय ने पिता को एहसास दिला दिया है की "बाप भी कभी बेटा था" ! पिता भी सोंच लेता है की एक समय था जब हमने भी किसी से प्यार किया था, लेकिन वह समय स्थिति ऐसी नहीं थी की हम अपने प्यार के बारे में किसीको बता पाते ! आज के पिताओं ने अपने पिताओं की गलती को दोहराना बंद कर दिया है ! इस व्यवस्था में अच्छाई और बुराई दोनों है !

अच्छाई यह की, अब माता पिता बच्चों की भावनाओ को समझने लगे है, उनकी इच्छाओं और भावनाओं को दबाना बंद कर दिया है ! जिससे बेटा या बेटी "कुंठा उन्माद तनाव और आत्महत्या जैसी बुराई से बचे रहते है ! पहले प्यार के बारे में दोनों पक्षों के परिवारों को पता होने के बावजूद शादी होना संभव न था ! जिससे जवानी के जोश और प्यार के जूनून में बच्चे आत्महत्या कर लेते थे !

बुराई यह की, पिताओ के द्वारा प्राप्त इस मानसिक स्वतंत्रता का आज के युवा गलत फायदा उठा रहे है ! पहले के युवा घर की इज्ज़त और सामाजिक भय के कारण अपने जीवनसाथी का चुनाव बड़ी सावधानी से करते थे ! लेकिन आज के नवयुवाओं ने प्यार को खेल समझ लिया है ! बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड बनाना एक शौक समझ लिया है ! घर का दबाव न होने के करण आज के युवा गैर्जिम्मेवारी ढंग से अपने साथी कचुनव करते है !फलत: चार दिन बाद प्रेमप्रसंग टूट (ब्रेकउप) जाता है ! बेतिओं को भी घर का डर नहीं रह गया ! ऐसी दशा में कभी कभी ऐसी स्थिति पैदा हो जाती है जो शादी के बाद होनी चाहिए ! बुजुर्गों ने बच्चो को मन की बात कहने की छूट क्या दे दी ! युवावर्ग तो बड़ो का सम्मान करना ही भूल गए ! घर की मन मर्यादा की कोई चिंता नहीं शायद इसी वजह से आज तलाक ज्यादा हो रहे है ! इस स्वतंत्रता का आज के युवा इस तरह लाभ उठा रहे है की "प्रेम और प्रेमियों का व्याकरण" ही बदल गया ! घर, समाज और मान अपमान का डर न होने के कारण कुछ युवा बलात्कार जैसे पाप कर डालते है ! जो इस स्वतंत्रता को शर्मसार कर डालता है ! बाप तो यह समझ गया की "वो भी कभी बेटा था" पर शायद बेटा यह भूल गया है की "वह भी कभी बाप बनेगा !

Wednesday, May 12, 2010

"प्रेम", "प्रकृति" और "आत्मा" {एक चिंतन} सन्तोष कुमार "प्यासा"

सृष्टि अपने नियम पूर्वक अविरल रूप से चल रही है ! सृष्टि अपने नियम पर अटल है, किन्तु वर्तमान समय में मनुष्य के द्वारा कई अव्यवस्थाए फैलाई जा रही है ! मनुष्य सृष्टि के नियमो के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर रहा है ! मनुष्य अपनी अग्यांताओ के कारण उन चीज़ों को प्रधानता दे रहा है जिसको "प्रेम, प्रक्रति, और आत्मा" ने कभी बनाया ही नहीं था ! जाती धर्म, मजहब, देश, राज्य, क्षेत्र और भाषा के नाम पर मनुष्य एक दूसरो को मारने पर तुला है !वर्तमान समय में मनुष्य की बुद्धि इतनी ज्यादा भ्रमित हो गई है की वह दो प्रेमियों के प्रेम से ज्यादा अपने द्वारा बनाए गए झूठे आदर्शो और जाती धर्म को महत्व दे रहा है ! अपनी झूठी शान के लिए एक मनुष्य दुसरे मनुष्य का रक्त जल की भांति बहा रहा है ! मनुष्य के इन्ही क्रियाकलापों से चिंतित होकर एक दिन एक गुप्त स्थान पर एकत्रत्रित हुए "प्रेम, प्रक्रति और आत्मा" !


प्रकृति ने आत्मा से कहा - आपके द्वारा रचित सृष्टि में ये क्या हो रहा है ! जाती धर्म और मजहब के नाम एक दुसरे की हत्या करना मनुष्य के लिए अदनी सी बात रह गई है ! आपने तो अपने द्वारा रचित सृष्टि में जाती धर्म आदि को स्थान ही नहीं दिया था ! आपके द्वारा तो केवल -

                                               आत्मन आकाश: सम्भूत: आकाशाद्वायु


                                                वायोरग्नि: आग्नेराप: अद्भ्यां प्रथ्वी

अर्थात- आप से (आत्मा से) आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल से प्रथ्वी की उत्त्पत्ति हुई ! तत्पश्चात प्रेम के संयोग से जीवन की उत्पत्ति हुई ! मेरे और मनुष्य की उत्पत्ति का कारण आप (आत्मा) और प्रेम है !फिर भी न जाने मनुष्य प्रेम को प्रधानता नहीं दे रहा ! बल्कि जाती धर्म और मजहब के नाम पर दो प्रेमियों का जीवन ही छीन लिया जाता है ! वैसे भी यदि निष्पक्ष होकर देखा जाए तो ज्ञात होता है की जाती धर्म का अपना कोई अस्तित्व ही नहीं है ! मनुष्य जिन्हें अपना भगवान मानते है या आदर्श मानते है, उन्होंने अपने काल में कभी भी जाती धर्म की तुच्छता को नहीं देखा ! राम ने सबरी के झूठे बेर खाए ! कृष्ण ने सुदामा के पैर धोए ! 


कृष्ण ने सुदामा के पैर धोए ! भीम ने राक्षसी से विवाह किया ! महादेव शंकर तो विशेषकर राक्षसों से प्रेम करते थे ! फिर आखिर मनुष्य किस धर्म की बात करता है या किस भगवान अथवा महापुरुष का अनुसरण करता है ! 


इस पर आत्मा ने कहा, जब मै मनुष्य के शरीर में रहती हु तब मुझ पर मन की वृत्तियाँ हावी हो जाती है ! जो मनुष्य से अनैतिक कार्य करवाती है ! जो मनुष्य अपने ज्ञान बल से वास्तविकता को जानकर, मन की वृत्तियों को तोड़कर अपनी वास्तविकता को पहचान लेता है , वह सभी जीवों से प्रेम करने लगता है ! किन्तु वर्तमान समय का मनुष्य अपनी बुराइयों में इतना ज्यादा लिप्त है की वह स्वयम इनसे मुक्त होना नहीं चाहता ! बल्कि उल्टा समाज में कुरीतिओं को जन्म देता है ! फिर रोता और हँसता है ! वर्तमान समय का मनुष्य सिर्फ भक्ति का दिखावा कर रहा है ! यदि वह सच्चा भक्त होता, तो राम की तरह सबरी के झूठे बेर खता ! अर्थात जाती धर्म और मजहब न देखता ! या फिर उसने कभी कृष्ण या किन्तु अथवा पांड्वो को अपना आदर्श माना होता तो कृष्ण की तरह सुदामा के पैर धोता ! अर्थात अपने मित्र के सुख दुःख में उसका साथ देता ! यदि किसी माँ ने कुंती को अपना आदर्श माना होता तो कुंती की तरह अपनी संतान को राक्षसी से विवाह करने का आदेश देती ! अर्थात जाती पाती को कोई मायने नहीं देती ! यदि किसी पिता ने दशरथ को अपना आदर्श माना होता तो अपने पुत्र की शादी उसी लड़की से कराता जिससे की वह प्रेम करता है ! वर्तमान पिता ने तो हिरन्यकश्यप को  अपना आदर्श माना है, जो अपनी झूठी शान के लिए अपनी संतान की भी हत्या करने से नहीं चूकता !
इस पर प्रकृति बोली - तो अब क्या होगा ? क्या अब सृष्टि व्यवस्थित नहीं होगी ? 


आत्मा ने कहा- जब मनुष्य अपने कर्तब्यों को भूलकर कुकृत्यों में लिप्त हो जाता है ! तब ऐसी दशा में प्रकृति का कर्तब्य बनता है की वह मनुष्य को उचित राह पर लाए ! अर्थात ऐसी स्थिति में प्रक्रति को अपना रौद्र रूप दिखाना चाहिए तथा मनुष्य एवं उसके द्वारा फैलाए गए कुकृत्यों का समूल नाश कर दे !


यह सुनकर प्रेम चुप न रहा, वह बोला मनुष्य हमारी उत्तपत्ति है ! इस प्रकार मनुष्य हमारी संतान है ! हम अपनी संतानों को कैसे समाप्त कर सकते है !
आत्मा ने कहा, तुम्हारा कहना भी उचित है ! हमने मिलकर सृष्टि और मनुष्य का निर्माण किया है ! इसका समूल नाश करना उचित नहीं है ! इसके लिए सिर्फ एक ही मार्ग है ! जब तक इस सृष्टि में तुम (प्रेम) हो तब तक इस सृष्टि का नाश नहीं होगा ! किन्तु जिस दिन इस सृष्टि से तुम्हारा अस्तित्व मिट जाएगा, या मनुष्य तुम्हे भूल जाएगा ! उसी क्षण इस सृष्टि का समूल नाश हो जाएगा !



Saturday, April 24, 2010

जागरूकता से ही कायम रह सकती है राष्ट्रशान्ति




आज हमारे समाज में आतंकवाद, भाषावाद की जो चिंगारी सुलग रही है, वह ज्वालामुखी का रूप न धरे इसके लिए हमे पूर्ण जागरूक होना ताकि राष्ट्र्शंती चिरकाल तक बरकरार रहे !

जागरूकता ही हमें भाषावाद जैसे दुर्गुणों से बचा सकती है ! गत महीनो पाहिले मुंबई में राजठाकरे के द्वारा भाषावाद के नाम पर देश में जो क्षणिक आशांति उतपन्न हुई थी, उसका कारण राजठाकरे का मानसिक उन्माद ही था, जिसका साथ कुछ मुंबई निवाशिओं ने भी दिया था ! यदि हम जागरूकता को अपनाए एवं स्वविवेक के से सोंच समझ कर किसी भी नेता या संस्था का साथ देशहित हेतु दे तो भाषावाद जैसी बेहूदी बुराई को पनपने से रोक सकते है !

जागरूकता के द्वारा आतंकवाद पर भी लगाम कसी जा सकती है ! किसी भी किरायदार को घर देने से पहले उसके बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त कर ली जाय, अवैध या लावारिस वस्तुओं से सतर्क रहें एवं नजदीकी पुलिस स्टेशन पर जानकारी दे ! अफवाहों से बचें ! न ही अफवाह फैलाय और न ही फैलने दें इत्यादि ! जागरूकता से भाईचारे की भावना की उत्पत्ति होती है जो राष्ट्रियेकता में सहायक है ! एक जागरूक व्यक्ति कभी भी किसी भी भाषा विशेष, धर्म , या स्थान विशेष का पक्ष नहीं लेगा ! क्युकी जागरूकता मानवता को मायने देती है ! जागरूकता से ही सौहार्द और सहयोग की भावना उत्पन्न होती है ! जब समाज में व्यक्तियों को एक दूसरे का पारस्परिक सहयोग मिलेगा तो सौहार्द उत्पन्न होगा ! और कई कार्य भी सफल होंगे ! किसी भी व्यक्ति, समाज या देश की उन्नति का मूल जागरूकता है ! समाज के जागरूक एवं शिक्षित व्यक्तिओं का कर्तव्य बनता है की वो समाज के कम पढ़े लिखे लोगो की सहायता, मार्गदर्शन एवं उनको उनके हक़ के बारे में जानकारी दें ! यदि हो सके तो हक़ दिलाने का भी प्रयत्न करना चाहिए ! वर्तमान समय में कई ऐसे लोग है जो अपने हक़ से वंचित है , जिसका कारण है जागरूकता की कमी ! जागरूक नागरिक को अपना हक़ प्राप्त करने में ज्यादा कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता ! अत: हम सबको मिल कर समाज में जागरूकता फैलानी चाहिए , जिससे राष्ट्र उन्नति के हर पायदान पर सफलता से चढ़े !

अंत में एक बात कहना चाहूँगा की ज्यादातर लोग किसी भी लेख को पढ़ कर उसकी प्रशंसा मात्र करते है ! मेरा अनुरोध है की इस लेख की प्रशंसा न करें अपितु इसमें लिखे तथ्यों को सार्थक बनाने हेतु प्रयास करें और राष्ट्र की उन्नति में अपना योगदान दें !

Thursday, January 14, 2010

महंगाई को न बनाएँ राजनैतिक मुददा

सत्ता के गलियारे में बैठे लोग कोई न कोई मुददा ढूंढते रहते है ताकि वो मीडिया और पब्लिक पर छाए रहें ! महंगाई परवान चढ़ रही है, लेकिन राजनैतिक पार्टियां एक दुसरे को इसका जिम्म्देदार ठहराने के अलावा और कुछ भी नहीं कर रही है ! आमजन इस महंगाई के कारण परेशान हैं ! चीनी इतनी महँगी हो गई है की लोग उसका स्वाद ही भूल गएं हैं! जनता सरकारी आकाओं से जानना चाहती है, की महंगाई कम होगी की नहीं ! इस बढती महंगाई का क्या कारण है ?
जिसके जवाब में कहा जाता है की हम कोई ज्योतिष नहीं ! इस तरह के गैरजिम्मेदार जवाब सुनकर जनता ऐसे सत्ताधारियों से घ्रणा करने लगती है ! क्या इसी लिए इन्हें सत्ता की बागडोर थमाई गई है ! सबको एक दूसरे के ऊपर उंगली उठाने का अनूठा मौका मिल गया है ! कोई भी महंगाई को कम करने के विषय में विचार नहीं कर रहा है ! राजनैतिक पार्टीओं के इस आपसी वाक युद्ध के बीच जनता पिस रही है ! आमजन को महंगाई से मुक्ति चाहिए, लेकिन वर्तमान स्थिति को देखते हुए यही ज्ञात हो रहा है की महंगाई से जल्द मुक्ति पाना मुमकिन नहीं है ! सत्ता के सारथीयो को आपसी नोक झोंक छोड़ कर महंगाई को कम करने का प्रयत्न करना चाहिए ताकि आमजन महंगाई से मुक्ति पा सके !

Monday, January 11, 2010

प्रकृति.....

नर्म सबेरा कभी रूह में शामिल था । अब पास भी नही फटकता । कहीं दूर ... चला गया ।
आज भी सबेरा निकलता है । रूप बदल कर । जिसे हम गर्म सबेरा कहते है ।
हमारी प्रकृति में इतना बदलाव ! हजम नही होता ।