Tuesday, March 31, 2009

यु जी सी द्वारा उच्च शिक्षा में सुधार के प्रयास

यु जी सी ने सुझाव दिया है की यूनिवर्सिटियां कुछ ऐसा उपाय भी करें जिसमें कोई छात्र अपने कॉलिज में पढ़ाई करे, मगर उसी पाठ्यक्रम का कोई खास पर्चा यदि वह किसी विशेष संस्थान से करना चाहे और उसकी व्यवस्था कर ले, तो उसे ऐसा करने की छूट हो। सैद्धांतिक रूप से यूजीसी के ये प्रस्ताव अच्छे हैं, पर फिलहाल इनका विरोध भी हो रहा है। अध्यापकों को यह शिकायत है कि यूजीसी बिना इन पर पर्याप्त चर्चा कराए और बगैर ब्लू प्रिंट बनाए ही इसे थोपने की कोशिश कर रही है। सभी यूनिवर्सिटियों में इसके लिए ऐसा ढांचा नहीं है कि वहां साल में दो बार परीक्षाएं हो सकें। इसी तरह जिस आंतरिक मूल्यांकन का प्रतिशत बढ़ाने की सिफारिश यूजीसी कर रही है, पर वह छात्रों पर उलटी भी पड़ सकती है। टीचर किसी छात्र से अपनी कोई नाराजगी इसके जरिए निकाल सकते हैं। इसलिए टीचरों द्वारा किए जाने वाले आंतरिक मूल्यांकन की निगरानी का भी तो उपाय करना होगा। लीक से हटने की यूजीसी की इच्छा का स्वागत है, पर यह खयाल रखना होगा कि जल्दबाजी से काम बिगड़ नहीं जाए। यूनिवर्सिटियों को तैयारी के लिए पर्याप्त वक्त मिलना चाहिए।
वैसे भी आतंरिक मूल्यांकन में यह बात सामने आई है की टीचर अपने पसंदीदा छात्रों को ज्यादा नंबर देते है और कुछ तो इतने लोभी किस्म के होते है की पैसा भी खाते है । इसी तरह से कुछ छात्रों से अपने घर का काम भी कराते है । आतंरिक मूल्यांकन से ऐसे प्रोफेसरों की चांदी हो जायेगी ।
कुछ अन्य सुझाव है ...यूजीसी ने शैक्षिक व प्रशासनिक सुधारों के लिए गठित ए. गणनम समिति की सिफारिशों के आधार पर सभी यूनिवर्सिटियों में ग्रेडिंग और सेमिस्टर सिस्टम लागू कराने की पहल की है। उच्च शिक्षा के ग्लोबल मानकों के मद्देनजर हमारी यूनिवर्सिटियों को अंकों और डिविजन की पारंपरिक प्रणाली से बाहर निकलना चाहिए।यह सुझाव काफी अच्छा है चर्चा और व्यापक व्यवस्था कर इसे लागू किया जा सकता है ।
आज बहुत बड़ी तादाद में हमारे छात्र उच्च और प्रफेशनल डिग्रियों व कोर्सों के लिए विदेशों का रुख कर रहे हैं। जब उनकी डिग्रियां और अंक वहां के सेमिस्टर या ग्रेडिंग सिस्टम से मेल नहीं खाते, तो दाखिले में दिक्कत होती है। अगर हमारा सिस्टम उनकी तरह होगा तो हमारे छात्रों को ऐसी परेशानी नहीं होगी। हमारी भी संभावना बढेगी विदेशों से और ज्यादा छात्र भारतीय यूनिवर्सिटियों में दाखिला लेगें क्योंकि यहां ऐसी शिक्षा उन्हें बहुत सस्ती पड़ेगी। ग्रेडिंग प्रणाली अंक प्रदान करने के सिस्टम से ज्यादा उपयोगी है, इसीलिए यहां सीबीएसई की परीक्षाओं में भी उसे अपनाया जा रहा है। पढ़ाई के लिहाज से साल में सिर्फ एक बार परीक्षा लेने से स्टूडंट पर सारे कोर्स की तैयारी एक साथ करने का दबाव बनता है। इसकी जगह सेमिस्टर और निरंतर मूल्यांकन करने वाला पैटर्न उन्हें ज्यादा सीखने के अवसर देता है और तनाव मुक्त रखता है।इस प्रकार यह प्रणाली व्यक्तित्व के विकास में भी मददगार साबित हो सकती है ।

Monday, March 30, 2009

आज का संगीत ...

एक ज़माना था . वह हिन्दी फ़िल्म संगीत का स्वर्ण युग कहा जाता था . उस जमाने में फिल्म के गीत उसकी कहानी के मुताबिक चलते थे। हर गाने के लिए कहानी में एक सिचुएशन होती थी। इन्हीं सिचुएशनल गानों की वजह से लोग इन्हें अपने से जोड़ पाते थे। मगर आज वह बात नही दिखती जबरदस्ती ठुसा जाता है , गाने हाइप के आधार पर चलते है । करोडो फुका जाता है , तब भी कुछ ही दिनों के बाद वे जबान और दिमाग दोनों से उतर जाते है । संगीत कारों को पहले जैसी आजादी नही मिलती । बाजार का काफी दबाव है । उनकी रचनात्मकता मारी जाती है । फूहड़ संगीत तो आज आम हो गए है । कुछ गानों के न तो बोल समझ आते है और न ही थीम ।
पुराने गानों को सदाबहार गाने यों ही नहीं कहा जाता।उनमे वो बात है जो आज के गानों में नही दिखती । उन्हें बार बार सुनने का मन करता है । ऐसा नही है की आज अच्छे गाने नही बनते , आज भी अच्छे गाने है पर उनकी तादाद बहुत ही कम है ।

Sunday, March 29, 2009

ऐसी ब्लोगिंग पर लानत है .....

आज ब्लोगिंग में एक नया ट्रेंड चल पड़ा है । अपने ब्लॉग को हीट कराने के लिए अपशब्दों का प्रयोग करो । बहुत से ऐसे ब्लोगर है जिनको किसी ख़ास विषय पर पकड़ नही होती .... ऐसे लोग जल्दी प्रसिद्धी पाने के लिए गाली -गलौज पर भी उतर जाते है । एक दुसरे पर छीटाकशी करना , पर्सनल आरोप लगाना ऐसे लोगो का हथकंडा हो गया है । कुछ देर के लिए वे फेमस भी हो जाते है पर अंततः उन्हें विलीन ही होना पड़ता है । मै कई दिनों से गौर कर रहा हूँ की ऐसे लोगो की तादाद ब्लोगिंग की दुनिया में बड़ी तेजी से बढ़ रही है ।
यह चिंता का विषय है । किसी आदमी को गाली देना अभिवक्ति की स्वतंत्रता नही हो सकती । आलोचना मुद्दों पर आधारित होनी चाहिए न की व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप लगाये जाने चाहिए । मुझे लगता है ऐसे लोगो के पास कोई योजना नही है और न ही कोई विचारधारा है । बस भेड़ की तरह ब्लॉग्गिंग करने आ गए है ....खैर यह उनका अधिकार है और उनसे कोई छीन भी नही सकता ...ऐसा होना भी नही चाहिए । पर अच्छा होगा की कुछ मर्यादा का ख्याल रखा जाए नही तो ब्लोगिंग की पहचान खतरे में पड़ सकती है । हमें यह संकल्प लेना चाहिए की ब्लोगिंग की दुनिया को साफ़ सुथरा बनाए रखेगे और ऐसे लोगो को कभी प्रोत्साहित नही करेगे जिनका मकसद केवल सनसनी पैदा करना है ।
स्थिति बड़ी भयावह है , ऐसे ऐसे शब्दों का प्रयोग हो रहा है , जिन्हें बोलने में भी शर्म आती है ...... कुछ शब्द तो बहुत घटिया होते है । कुत्ते , कमीने , हरामजादा , माधरचोद , लौंदियाबाज , साले , हरामी , गांड में मारुगा , सूअर कही के , बेटी चोद , चूतिया कही के ..... बहुत सारे ऐसे शब्द जिनका जिक्र करने में भी मुझे शर्म आती है । और इनका प्रयोग किसी ख़ास व्यक्ति के में सन्दर्भ में भी किया जा रहा है , जो माफ़ी के काबिल नही है ।
मै उन सभी महानुभावों से कहना चाहता हूँ की आप इस तरह के शब्दों का प्रयोग कर महान ब्लोगर या विद्वान् कभी नही बन सकते । अगर ऐसे शब्दों का प्रयोग कर कोई महान बन जाता है तो मुझे नही बनना ऐसा ....मै ऐसी विद्वता को दूर से ही सलाम करुगा । गुमनामी में रहना पसंद करुगा ..वहां मुझे ज्यादा शुकून मिलेगा ।
अगर किसी को मेरी बात अच्छी नही लगी हो तो मै माफ़ी चाहता हूँ पर एक बात तो साफ़ कर दूँ की मैंने जो कहा या लिखा है वह शत प्रतिशत सही है ।

Tuesday, March 24, 2009

डॉक्टर साब उर्फ़ गुड्डू भाई ..

कभी कभी एर्थ का अनर्थ होने में देर नही लगता । हमारे एक डॉक्टर साब है । वह सचमुच के डॉक्टर तो नही है पर यह उनका निकनेम है । है तो वह नेता आदमी ...पर सिविल सेवा ने भी उनको काटा हुआ है । यानी तैयारी में भी लगे हुए है । मंडली में डॉक्टर और गुड्डू भाई के नाम से ही जाने जाते है । ओरिजिनल नेम सगीर नज्म नाम मात्र के लोग ही जानते है । उनकी आधी आधी चाय बड़ी फेमस है । किसी को कहते है ''आओ डॉक्टर आधी आधी चाय हो जाय '' उनको चाय के साथ सिगरेट जरुर चाहिए । एक हाथ में चाय और दुसरे हाथ में सिगरेट .... डेली का रूटीन । मै तो सेकेण्ड स्मोकर बन गया हूँ ...पर अब थोड़ा दूर ही रहता हूँ , जब वो कश खीच रहे होते है । कभी भी पुरी चाय नही लेते जैसे वह उनकी सौत हो ।
बहुत बातूनी भी है ....जो एक नेता टाइप के व्यक्ति को होना भी चाहिए । पर हद तब हो जाती है जब बोलते बोलते बहक जाते है ... तब एर्थ का अनर्थ हो जाता है । एक बार ऐसे ही एक व्यक्ति को जो उनका अच्छा फ्रेंड है ,को प्रकांड विद्वान् की जगह प्रखंड विद्वान् कह दिया और झेप गए । वैसे तो इस तरह की गलतियाँ सभी लोग करते है , पर हमारे नेताजी उर्फ़ गुड्डू भाई कुछ जयादा ही एक्सपर्ट है । इमोशन में आकर अपनी ही बातों में फंस जाते है .... बाद में उसपर विचार करते है । आलसी तो बिल्कुल नही है , कही भी जाने के लिए तैयार रहते है ,किसी की मदद करना तो उनका रोजमर्रा का काम है ।
एक दिन की बात है वह अपने एक मित्र के साथ रिक्से से जा रहे थे , उनकी बातों से रिक्सा वाला उनको डॉक्टर समझ लिया और कहा की डॉक्टर साब मुझ पर कृपा कर एक दवा बतला दीजिये , मुझसे रिक्सा नही चल रहा है । फ़िर इनको अपनी डॉक्टर गिरी दिखाने का मौका मिल गया । और वैसे ही कुछ दवा का नाम भी बतला दिए ।
रिक्सीवाला हो या खोमचेवाला , चायवाला हो या ठेलेवाला , इन सबसे उनकी खूब बनती है । जनाधार वाले नेताओं की यही तो निशानी होती है । मुझे इस बात का डर लगता है की अगर वो किसी बड़े पद पर चले गए और उनको मिडिया के सामने बोलने का मौका मिले तो क्या बोल देगे कुछ कहा नही जा सकता । कई ट्रेलर तो दिखला भी चुके है । यह भी सोचता हूँ की तब तक आदत सुधर जायेगी और ये बचपना ख़त्म हो जायेगी ।
उनके पास भाँती भाँती के जीव जंतु भी आते रहते है । मै अपने को एक जंतु ही मानता हूँ सो उनके मित्रों या परिचितों को जंतु कह दिया । एक दिन ऐसे ही एक जंतु के मुख से निकल गया की मेरे पास एक दांत और बतीस मुंह है ... आप सोच सकते है , उसकी क्या हालत हुई होगी । खैर अच्छे आदमी है ... मेरे अभिन्न मित्र है । हम साथ साथ रहते भी है । मेरे मन में कोई दुर्भावना भी नही है ।
कभी कभी कोमेडी भी करते है तब मै सोचता हूँ की बेकार में वह नेता गिरी के चक्कर में पड़े है , उन्हें लाफ्टर चैनल ज्वाइन कर लेना चाहिए । उम्र लगभग पैतीस की और वजन ५१ किलो की कामेडियन में जमेगे भी ।
मुझे लगता है की शायद जल्दी किसी बात का बुरा नही मानते इस लिए उनके बारे में इतना लिखने पर भी डर नही लगा ।

Thursday, March 19, 2009

हमारी नई पीढी की साख पर बट्टा लग गया है .....

यह शर्म की बात है की आज भी इतने प्रयासों के बाद रैंगिंग जारी है। कुछ दिन पहले ही हिमाचल प्रदेश के डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलिज में हुई रैगिंग के कारण गुड़गांव के छात्र अमन काचरू की मौत हो गई . आंध्र प्रदेश के एक एग्रीकल्चर कॉलिज की छात्रा त्रिवेणी ने भी रैगिंग से परेशान होकर जहर पी लिया। इसके बाद से ही रैगिंग पर अंकुश लगाने के तमाम उपायों पर बहस हो रही है । देश में रैगिंग पर लगाम कसने के लिए राघवन कमिटी का भी गठन किया गया है. पर इतना तो तय है की केवल कमिटी बना देने भर से रैंगिंग ख़त्म नही हो सकती है. अब कुछ विशेष उपाय करना होगा । यु जी सी ने भी कहा है की जो संस्थान रैंगिंग को रोकने में असफल रहते है , उनके फंड में कटौती की जा सकती है । सुपिम कोर्ट ने इन राज्यों को नोटिस भी भेजा है । देखते है की अब कुछ कदम आगे उठाया नही जाता है या नही । हैरानी की बात है की देश के प्रमुख बड़े बड़े संस्थानों में खूब रैंगिंग होती है । मेडिकल कालेज तो इस मामले में कुख्यात है । इस बार तो हद ही हो गई रैंगिंग ने एक छात्र की जान ले ली । वहशीपन की सारे हदे पार हो गई । ऐसे डॉक्टर किसी का क्या भला करेगे । वैसे भी आज ज्यादातर डॉक्टरों की साख बची कहा है ....ऐसी घटनाओं से तो सिक्षा व्यवस्था पर कालिख पुत गई है । अब जिम्मेदारी हमारी सरकार पर और शिक्षा संस्थानों पर है की वे अपने मुंह पर पुते हुए कालिख को कैसे साफ़ करते है । साथ ही हमारी नई पीढी की साख पर भी बट्टा लग गया है । कुछ सोचो यार ऐसा क्यों हो रहा है ?... परवरिश में कहाँ कमी रह गई है ?

Sunday, March 15, 2009

शिक्षा पर एक लेख की शुरुआत ....

आज शिक्षा की हालत किसी से छिपी नही है । आजादी के इतने सालों बाद भी लगभग ३५ फीसदी जनसँख्या पढ़ना लिखना नही जानती है । पुरे भारत में खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का प्रसार न होना एक बहुत बड़ी चुनौती है । हम और आप मिलकर कुछ प्रयास कर सकते है । इसी क्रम में मै शिक्षा पर आधारित एक कड़ी की शुरुआत कर रहा हूँ । उम्मीद है आप सबका साथ जरुर मिलेगा ।
आइये कुछ जानते और करते है .....
१९७६ में शिक्षा को समवर्ती सूचि में डाला गया था । इसके साथ ही शिक्षा के प्रसार में काफी प्रगति हुई । लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है । १९४७ में केवल १४ फीसदी लोग ही साक्षर थे जबकि २००१ की जनगणना के अनुसार ६५ फीसदी लोग साक्षर है । आकडे से लगता है की हमने काफी कुछ किया है , पर दुसरे बड़े देशों से तुलना करनेपर पाते है की हम अभी बहुत पीछे है । अगली कड़ी में और बातें होगी ।

Thursday, March 12, 2009

बंगलादेश में सैनिक विद्रोह ..

आज बांग्लादेश सुलग रहा है । वहां जिस तरह बांग्लादेश राइफल के जवानों ने अपने अधिकारिओं और अन्य जवानों की हत्या की उसकी आंच हमपर भी आएगीबांग्लादेश रायफल में विद्रोह इस उपमहाद्वीप में नई प्रवृति की शुरुआत कर सकता हैकई साल पहले पिर्दिवाह की घटना के समय ही बी डी आर का असली चेहरा खुलकर सामने गया थाअब पर्दाफाश भी हो गया
इस विद्रोह की दो प्रमुख वजहें बताई जा रही हैं। बीडीआर के जवान सेना के जवानों जैसा वेतन और अन्य सुविधाएं नहीं मिलने और बीडीआर के सभी उच्च पदों पर सेना के अफसरों की तैनाती से नाराज थे। उनकी नाराजगी की दूसरी बड़ी वजह यूएन पीस मिशन पर बीडीआर के जवानों को नहीं भेजा जाना बताई जा रही है। पर ये दोनों इतनी बड़ी वजहें नही है की वे






अधिकारियों के घरों में घुसकर लूटपाट करते और उनकी पत्नियों से बलात्कार कर डालते। कई अफसरों को जिन्दा जमीं में गाड़ देते ।
यह बगावत अचानक नहीं हुई है । ऐसे संकेत और सबूत हैं कि इस नरसंहार के लिए लंबे समय से तैयारी की जा रही थी। खुफिया जानकारियों के अनुसार चटगांव, राजशाही और खुलना में इस से पहले कई गुप्त बैठकें हुई थीं, जिनमें इस घटना को अंजाम देने का खाका तैयार किया गया था। बगावत के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार माने जा रहे बीडीआर के डिप्टी अडिशनल डाइरेक्टर तौहीदुल आलम ने भी इन बैठकों में शिरकत की थी। वारदात को अंजाम देने के लिए तारीख भी बहुत सोच-समझकर चुनी गई थी। बांग्लादेश के पूर्व सैनिक और खुफिया एजंसी अधिकारियों के मुताबिक इस बगावत का जिम्मा प्रफेशनल किलर स्क्वॉड को सौंपा गया था . उन्हें बीडीआर जवानों की वर्दी पहना कर अंदर भेजा गया था।

बगावत अचानक नहीं हुई और जवानों ने किसी उत्तेजना में गोलियां नहीं चलाईं, यह इस बात से भी साफ है कि हत्यारों के चेहरे लाल कपड़े से ढके हुए थे और वे दरबार हाल के अलग-अलग दरवाजों से दाखिल हुए थे। यही नहीं, वारदात के बाद भागने के लिए जिन रास्तों का इस्तेमाल किया गया, जहां से वही आदमी निकल सकता था जो उस इलाके से पहले से परिचित हो। घटना के बाद बीडीआर का शस्त्रागार भी लूटा गया और उसके दो सौ साल पुराने रेकॉर्ड रूम को आग लगा दी गई। इस बात से पता चलता है की कितने गुप्त तरीके से इस घटना की तैयारी की गई थी ।
इस साजिश की जड़ें कहां थीं और इसका मकसद क्या था? कहीं इसमें बांग्लादेश के शिपिंग जाइंट सलाउद्दीन का तो कोई हाथ नहीं था? इधर इस मामले में जब से सलाउद्दीन का नाम सामने आया है, कई उलझी हुई कडि़यां अपने-आप ही खुलने लगी हैं। यह किसी से छिपा नहीं है कि चटगांव आर्म्स ड्रॉप केस में अल्फा उग्रवादियों तक हथियार पहुंचाने के लिए किस तरह सलाउद्दीन के जहाजों का इस्तेमाल किया गया था। पाकिस्तान की सैनिक खुफिया एजंसी आईएसआई और बांग्लादेश की विपक्षी पार्टी बीएनपी से भी उसके करीबी रिश्ते हैं।

बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख भूमिका निभाने वाले बीडीआर में बगावत भड़काने की साजिश में आईएसआई की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। माना जा रहा है कि इस बगावत का मकसद बांग्लादेश की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार दो प्रमुख सैनिक बलों -बांग्लादेश सेना और बीडीआर- दोनों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा कर के देश में गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा कर देना था।
वेतन और सुविधाओं में बेहतरी के नाम पर की गई एक सुरक्षा बल की इस बगावत का असली निशाना दरअसल बांग्लादेश में लंबे अंतराल के बाद चुनी गई लोकतांत्रिक सरकार ही थी। और यही नहीं, अगर बगावत अपने उद्देश्य में पूरी तरह कामयाब हो जाती, तो यह न केवल बांग्लादेश, बल्कि भारत के लिए भी एक बहुत बड़ा झटका होती। आगे भारत को बांग्लादेश की स्थिति पर गहराई से विचार करना होगा । साथ ही ऐसी प्रवृति पर रोक लगाने के लिए कारगर उपाय करना होगा ।