Monday, December 7, 2009

आजादी के बाद भी नहीं ख़त्म हुई आदिवासिओं की समस्याएं

स्वतंत्रता प्राप्ति के ६२ वर्षो पशचात भी आदिवासिओं की समस्याओं का कोई ठोस हल नहीं निकला जा सका ! वर्तमान समय में भी अनेक प्रकार के शोषण , उत्पीडन तथा अत्याचार के शिकार है जिसके लिए हमारी सरकार जिम्मेदार है ! वर्तमान समय में भूमि तथा वन कानून आदिवासियों के लिए बहुत कठोर है ! उन्हें आजीविका के लिए वनों के प्रयोग की स्वतंत्रता नहीं है ! ठेकेदार , वनाधिकारी तथा साहूकार आदि इनका शोषण करते है !




इस कारण इनकी परम्परागत अर्थ व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई है तथा आर्थिक रूप से ये बिलकुल पिछड़ गए हैं ! अधिकाँश आदिवासी आधुनिक समय में भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं ! आदिवासी उपयोजना , बीस सूत्री कार्यक्रम , केन्द्रीय सहायता तथा विशेष योजनाओं के बावजूद भी आदिवाशियों के आय में कोई खासा फर्क नहीं पड़ा है! गरीबी दूर करने वाली आई० आर० डी ० पी० योजना में छोटे तथा सीमांत आदिवासी किसानो को सरकार तराजू पकडा रही है !



शिक्षा तथा सहरी सभ्यता से दूर जंगलो में निवाश करने वाले आदिवासिओं का शोषण कोई नई बात नहीं है ! वनों से प्राप्त नैसर्गिग संपदा के लिए ठेकेदारों, साहूकारों तथा बिचौलियों द्वारा भारी शोषण किया जाता है ! वन से उत्पन्न वस्तुएं जैसे चिरौंजी, शहद आदि महँगी वस्तुओ का उचित मूल्य इन्हें नहीं मिल पाता ! लघु वन उत्पादों में वृद्धि की गई है! उसका लाभ इन लाखों आदिवासियों को न मिल कर चंद बिचौलियों के तिजोरी में बंद हो जाती है ! औद्योगीकरण के नाम पर जो ढांचा खडा किया गया है ! उससे सम्पूर्ण देश में बेदखल लोगो की एक लम्बी मांग खड़ी हो गई है!



चाहे कोयले की खाने हो या बाँध या अन्य भारी कारखाने तथा उद्योग हो कुल मिलाकर उनका लाभ कुछ वर्ग विशेष के लोगों को ही प्राप्त हो रहा है ! जिस गरीब आदिवासी की जमीं से कोयला निकला जाता है तथा विकाश के लिए जिस बुनियाद की नींव रखी जाती है उसमे आदिवासियों की भूमिका केवल ढाँचे तक ही सिमित रहती है ! सैकणों वर्षो से जिस जमीन से वह जुदा होता है, उससे अध्योगीकरण के नाम पर उसे वंचित कर दिया जाता है! उसकी जमीन के बदले हर्जाने के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की जाती! एक अधि सूचना द्वारा जिसे आदिवासी पढ़ भी नहीं सकता, जमीन सर्कार की हो जाती है! इसी प्रकार के कई अन्य अनेक समस्याओं के कारण आदिवासिओं का जीना दूभर हो गया है !




अत: सरकार को चाहिए की वो आदिवासिओं के हितार्थ कुछ नए नियम पारित करे जिसका की कडाई से पालन हो ताकि आदिवासिओं को "सामाजिक" , "आर्थिक" और "धार्मिक" समस्याओं से मुक्ति मिले जिससे की वह एक ने जीवन की शुरुआत करें

3 comments:

mark rai said...

bahut hi badhiya lekh .santosh ji....aapne aadiwasiyon ke dard ko bakhubi ubhaara hai ........

Anonymous said...

आप ने क्या किया इन लोगों के लिए ???

दिगम्बर नासवा said...

जो सरकार ६३ वर्षों में नही जागी उसके जागने की उमीद करना भी बेमानी है .......... खुद ही कुछ करना पढ़ेगा उनको ......... कोई किसी के लिए कुछ नही करेगा .........