Tuesday, April 7, 2009

अमेरिका और आतंकवाद

आईएसआई आतंकवादियों को संरक्षण और बढ़ावा दे रही है, लेकिन अमेरिका ने इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया। वह इस बात पर गौर करने के लिए भी तैयार नहीं है कि आतंकवाद को रोकने के लिए पाकिस्तान को वित्तीय और सैन्य सहायता उपलब्ध कराए जाने के बावजूद तालिबान की ताकत में बढ़ोतरी हुई है। पाकिस्तान को उसके हुक्मरानों की दोहरी नीति की कीमत चुकानी पड़ रही है। इसी दोहरे रवैये ने आज ऐसी हालत पैदा कर दी है कि पाकिस्तान की सत्ता आतंकवादियों के सामने इस कदर असहाय नजर आती है। इस तेजी से फैल रही आग पर काबू पाने के लिए वहां के राजनीतिक नेतृत्व को अपनी दुविधा से उबरना होगा। भारत और पाक दोनों मिलकर आतंकवाद से निबट सकते है , पर ऐसा शायद ही हो । अमेरिका को भी अपना वह चश्मा बदलना होगा जिससे उसे आतंकवाद सिर्फ दुनिया के उसी हिस्से में नजर आता है, जहां उसके सैनिक घिरे होते हैं।शुरू में लगा था की ओबामा की निति पाक के मामले में अलग होगी लेकिन बाद में वह भी उसी निति पर चल पड़ा है जिस पर चल कर बुश सबसे अलोकप्रिय रास्त्रपति हो गया और उसे जुत्तें तक खाना पड़ा । ओबामा भी बिना सोचे समझे पाक को आर्थिक मदद दे रहा है , यह पैसा आतंकिओं के पास जरुर जाएगा और फ़िर अमेरिका के साथ साथ हमें भी इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी । सिर्फ़ पैसे बाँट देने आतंक का खत्म संभव होता तो बहुत पहले ही ऐसा हो चुका होता । अफ्शोश अमेरिका समझते हुए भी नासमझ बना हुआ है । अमेरिका चाहता है कि अल कायदा के खिलाफ अभियान में उन्हें पाकिस्तान का सहयोग मिलता रहे, लेकिन उसका ध्यान इस बात पर नहीं है कि तालिबानी अब लश्करे तैयबा जैसे संगठनों के जरिए दहशतगर्दी फैला रहे हैं। उन पर रोक की ओबामा के पास कोई खास योजना नहीं है। जो की एक दिन नासूर बन सकता है और उसकी आंच भारत पर भी पड़ेगा ।

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