२२ अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया गया । हर साल इसी दिन को मनाया जाता है । पृथ्वी को बचाने की तरकीब बनाई जाती है । लोगो में जागरूकता फैलाई जाती है । कई कार्यक्रम होते है । बंद कमरों में पृथ्वी की स्थिति पर चर्चा होती है । सेमिनारों में जानकार लोग जीवन को बचाने सम्बंधित बड़ी बड़ी बातें करते है । ये बातें २३ अप्रैल को भुला दी जाती है और फ़िर अगले २२ अप्रैल का इन्तजार शुरू हो जाता है ।
पृथ्वी दिवस भी होली , दिवाली ,दशहरा जैसे त्योहारों की तरह खुशी का दिन और खाने पिने का दिन मान कर मनाया जाने लगा है । इसके उद्देश्य को लोग केवल उसी दिन याद रखते है । बल्कि मै तो कहुगा की घडियाली आंसू बहाते है । हमें इस बात का अंदाजा नही है की कितना बड़ा संकट आने वाला है और जब पानी सर से ऊपर चला जायेगा तो चाहकर भी कुछ नही कर सकते , अतः बुद्धिमानी इसी में है की अभी चेत जाए ।
वैश्विक अतर पर पर्यावरण को बचाने की मुहीम १९७२ के स्टाकहोम सम्मलेन से होती है । इसी सम्मलेन में पृथ्वी की स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई और हरेक साल ५ जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने पर सहमती व्यक्त की गई । १९८६ के मोंट्रियल सम्मलेन में ग्रीन हाउस गैसों पर चर्चा की गई । १९९२ में ब्राजील के रियो दे जेनेरियो में पहला पृथ्वी सम्मलेन हुआ जिसमे एजेंडा २१ द्वारा कुछ प्रयास किए गए । इसी सम्मलेन के प्रयास से १९९७ में क्योटो प्रोटोकाल को लागू करने की बात कही गई । इसमे कहा गया की २०१२ तक १९९० में ग्रीन हाउस गैसों का जो स्तर था , उस स्तर पर लाया जायेगा । अमेरिका की बेरुखी के कारण यह प्रोटोकाल कभी सफल नही हो पाया । रूस के हस्ताक्षर के बाद २००५ में जाकर लागू हुआ है । अमेरिका अभी भी इसपर हस्ताक्षर नही किया है । यह रवैया विश्व के सबसे बड़े देश का है , जो अपने आपको सबसे जिम्मेदार और लोकतांत्रिक देश बतलाता है । वह कुल ग्रीन हाउस गैस का २५%अकेले उत्पन्न करता है ।
अगर ऐसा ही रवैया बड़े देशो का रहा तो पृथ्वी को कोई नही बचा सकता । जिस औद्योगिक विकास के नाम पर पृथ्वी को लगातार लुटा जा रहा है , वे सब उस दिन बेकार हो जायेगे जब प्रकृति बदला लेना आरम्भ करेगी ।
Wednesday, April 22, 2009
Monday, April 20, 2009
हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कही और जीवन है ???
आकाश को देख रहा हूँ । कोई छोर नही दीखता । इतना फैला हुआ है ...... डर लग लगता है ।
सोचता हूँ । हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कही और जीवन है ???
अगर नही तो रोंगटे खड़े हो जाते है । इतने बड़े ब्रह्माण्ड में हम अकेले है !विश्वास नही होता ...लगता है , कोई तो जरुर होगा ।
फ़िर सोचता हूँ । आकाश को इतना फैला हुआ नही होना चाहिए । कुछ तो बंधन जरुरी है । भटकने का डर लगा रहता है ।
सुना है पृथ्वी गोल है । हो सकता है , ब्रह्माण्ड भी गोल हो । किसे पता ?? भाई हमारी भी तो एक सीमा है । सबकुछ नही जान सकते । कुछ दुरी तक ही भाग दौड़ कर सकते है । भाग दौड़ करते रहे । इसी का नाम तो जीवन है । इतना सलाह जरुर देना चाहुगा की सबकुछ जानने के चक्कर में न पड़े । यह एक बेकार की कवायद है । इस राह पर चल मंजिल को पाना तो दूर की बात है , खो जरुर देगे ।
इधर ये भी सुनने में आया है की एक क्षुद्र ग्रह पृथ्वी से टकराने वाला है ...शायद २०२८ में !
यह सनसनी है या हकीकत नही पता ।
अगर सनसनी है ...तो है ..पर वास्तव में ऐसा है तो परीक्षा की घड़ी आ गई है ...
इस खबर को सुनकर सुमेकर लेवी वाली घटना याद आती है , जब मै बच्चा था । सुमेकर बृहस्पति से जा टकराया था । यह घटना १९९४ की है । उस समय ऐसी ख़बर सुन डर गया था ।
देखते है ...२०२८ में क्या होता है .......
सोचता हूँ । हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कही और जीवन है ???
अगर नही तो रोंगटे खड़े हो जाते है । इतने बड़े ब्रह्माण्ड में हम अकेले है !विश्वास नही होता ...लगता है , कोई तो जरुर होगा ।
फ़िर सोचता हूँ । आकाश को इतना फैला हुआ नही होना चाहिए । कुछ तो बंधन जरुरी है । भटकने का डर लगा रहता है ।
सुना है पृथ्वी गोल है । हो सकता है , ब्रह्माण्ड भी गोल हो । किसे पता ?? भाई हमारी भी तो एक सीमा है । सबकुछ नही जान सकते । कुछ दुरी तक ही भाग दौड़ कर सकते है । भाग दौड़ करते रहे । इसी का नाम तो जीवन है । इतना सलाह जरुर देना चाहुगा की सबकुछ जानने के चक्कर में न पड़े । यह एक बेकार की कवायद है । इस राह पर चल मंजिल को पाना तो दूर की बात है , खो जरुर देगे ।
इधर ये भी सुनने में आया है की एक क्षुद्र ग्रह पृथ्वी से टकराने वाला है ...शायद २०२८ में !
यह सनसनी है या हकीकत नही पता ।
अगर सनसनी है ...तो है ..पर वास्तव में ऐसा है तो परीक्षा की घड़ी आ गई है ...
इस खबर को सुनकर सुमेकर लेवी वाली घटना याद आती है , जब मै बच्चा था । सुमेकर बृहस्पति से जा टकराया था । यह घटना १९९४ की है । उस समय ऐसी ख़बर सुन डर गया था ।
देखते है ...२०२८ में क्या होता है .......
Tuesday, April 7, 2009
आतंकवाद ......पकिस्तान ......भारत
पाकिस्तान में आतंकवाद का एक इतिहास रहा है . सोवियत संघ सेना ने जिन दिनों अफगानिस्तान में नाजायज घुसपैठ कर रखी थी, उन्हीं दिनों में पाकिस्तान में लड़ाकू और कट्टरवादी संगठनों का सबसे ज्यादा विस्तार हुआ था। इसमें पाकिस्तान, अमेरिका व सऊदी अरब की बहुत नजदीकी साझेदारी रही थी। इसी दौरान अमेरिका और पाकिस्तान के मुख्य गुप्तचर संगठनों (सीआईए और आईएसआई) में इतने करीबी रिश्ते बन गए, जो बाद में भी कई अप्रत्याशित रूपों में सामने आए।
बाद में पश्चिमी देशों ने जहां अपने लिए ख़तरनाक सिद्ध होने वाले आतंकवादियों की धरपकड़ के लिए पाकिस्तान पर बहुत जोर बनाया, वहीं भारत के लिए खतरनाक माने जाने वाले आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई पर कम ध्यान दिया। इसी कारण अमेरिका के नेतृत्व में आतंकवाद विरोधी युद्ध तेज हुआ, पर भारत के खिलाफ पाकिस्तान की धरती से आतंकवादी वारदातों का सिलसिला शुरू हो गया। यह अमेरिका और पश्चिमी देशों की दोमुहीं निति थी जिसका खामियाजा आज भारत भुगत रहा है ।
आज हम अमेरिकी नेतृत्व में चल रहे आतंकविरोधी अभियान में सहयोग कर रहे है , अच्छी बात है , पर इस मामले में हमें उसका पिछलग्गू बनकर नहीं बनना चाहिए। इसकी बजाय हमें अपने दीर्घकालीन हितों के प्रति सचेत रहना चाहिए। हमें आतंकवाद से कैसे निपटना है- इसके लिए स्वतंत्र रणनीति अपनानी होगी . हमारी समस्या बिल्कुल अलग है अतः इसका समाधान भी अलग तरीके से ही होगा ।
निश्चित ही पाकिस्तान में पनप रहा आतंकवाद भारत और शेष दुनिया के लिए चिंता का विषय है, पर यह भी ध्यान में रखें कि यह तो पाकिस्तान में अमन-शांति चाहने वाले लोगों और वहां की लोकतांत्रिक ताकतों के लिए भी एक बड़ा खतरा है। वहां के अधिकाँश लोग और लोकतांत्रिक संगठन आतंकवाद की बढ़ती ताकत पर रोक चाहते हैं। वहां की लोकतांत्रिक ताकतें फाटा क्षेत्र, उत्तर पूर्वी सीमा प्रांत के कुछ इलाकों और स्वात घाटी पर तालिबान के बढ़ते नियंत्रण से बहुत चिंतित हैं। ऐसे में भारत वहां पर लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को बढावा देने में सहयोग कर सकता है । यह भी याद रखना होगा की अगर तालिबान का प्रसार पकिस्तान में होता है तो कश्मीर में भी उनकी उपस्थिति से इनकार नही किया जा सकता है । यह एक घातक स्थिति होगी । हमें पहले ही तैयार रहना चाहिए ।
भारत को अपनी सुरक्षा को मजबूत बनाते हुए आतंकवाद से निपटना ही होगा, पर साथ ही यह कोशिश करनी होगी कि पाकिस्तान के अंदर दहशतगर्द पर लगाम लगाने का जो मैकनिज़म है, वह भी मजबूत हो। गौर करने वाली बात यह है कि कोई भी आतंकी घटना होने पर भारत से जब भड़काऊ पाकिस्तान-विरोधी बयान जारी होता है, तो इससे पाकिस्तान की कट्टरवादी, आतंकवादी ताकतें मजबूत होती हैं और अमन-पसंद शक्तियां कमजोर पड़ती हैं। भारत के बयान पाकिस्तान विरोधी न होकर वहां पनप रहे आतंकवाद पर चोट करने वाले होने चाहिए। ये बयान स्पष्टत: आतंकवाद और उससे होने वाली क्षति पर केंदित होने चाहिए।
भारत को इस बारे में अभियान जरूर चलाना चाहिए कि पाकिस्तान के आतंकवादियों, कट्टरपंथियों और तालिबानी तत्वों से भारत समेत पूरे विश्व को कितना गंभीर खतरा है, पर यह अभियान पाकविरोधी न होकर। पाकिस्तान से पोषित आतंकवाद का विरोधी होना चाहिए। इन तरह के अभियानों का फर्क समझना बहुत जरूरी है। पाकिस्तान के अंदर से संचालित हो रहे आतंकवाद के विरोध में अभियान चलाते या कोई बयान देते समय पाकिस्तान की आम जनता और लोकतांत्रिक ताकतों को यह अहसास नहीं होना चाहिए कि हम उन्हें घेर रहे हैं। अपितु उन्हें यह महसूस होना चाहिए कि दहशतगर्द के खिलाफ उनके संघर्ष में भारत उनके साथ है। हमारी यह सोच पाकिस्तान के मीडिया के माध्यम से वहां के लोगों तक पहुंचनी चाहिए।
भारत चूंकि दक्षिण एशिया का एक अहम व असरदार मुल्क है, इसलिए इस देश की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह विश्व के विभिन्न मंचों से दहशतगर्द और कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों व संगठनों को मजबूत करने में मदद दे। उनके ऐसे विरोध को बुलंद करने वाली जमीन तैयार करे। खास तौर से भारत और पाकिस्तान के अमन-पसंद लोगों के मेलजोल के मौकों को बढ़ानाए। ऐसी कोशिशों से ही दक्षिण एशिया में सांप्रदायिक सद्भाव का माहौल बनेगा। यह कोशिश भी पूरे जोर से की जानी चाहिए कि आतंकवादियों और कट्टरपंथी ताकतों द्वारा गुमराह युवा अगर अमन की राह पर लौटना चाहें, तो उनके परिवार के सहयोग से उनके पुनर्वास के प्रयास हों।
भारत के अंदर भी कुछ ऐसे लोग और ताकतें मौजूद हैं, जो धर्म को कट्टरपंथी हिंसा की राह पर ले जाना चाहती हैं। अगर हम पूरी दुनिया में पाकिस्तान पोषित आतंकवाद का मुद्दा उठा रहे हैं और उसके खिलाफ अभियान चलाना चाहते हैं, तो यह भी जरूर है कि अपने घर के भी इन कट्टरपंथी हिंसक तत्वों के विरुद्ध कड़े कदम उठाएं, ताकि हमारी कथनी और करनी में कोई फर्क न नजर आए। इन उपायों को आजमाने से पाकिस्तान पोषित आतंकवाद पर निश्चित रूप से लगाम लगेगी। इस क्षेत्र में लंबे समय तक शांति-स्थिरता कायम रह सकेगी। अगर हमारी कथनी और करनी में फर्क होता है तो आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई कमजोर हो जायेगी । आतंरिक अशांति को नियंत्रित कर ही हम बाह्य आतंकवाद पर लगाम लगा सकते है ।
बाद में पश्चिमी देशों ने जहां अपने लिए ख़तरनाक सिद्ध होने वाले आतंकवादियों की धरपकड़ के लिए पाकिस्तान पर बहुत जोर बनाया, वहीं भारत के लिए खतरनाक माने जाने वाले आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई पर कम ध्यान दिया। इसी कारण अमेरिका के नेतृत्व में आतंकवाद विरोधी युद्ध तेज हुआ, पर भारत के खिलाफ पाकिस्तान की धरती से आतंकवादी वारदातों का सिलसिला शुरू हो गया। यह अमेरिका और पश्चिमी देशों की दोमुहीं निति थी जिसका खामियाजा आज भारत भुगत रहा है ।
आज हम अमेरिकी नेतृत्व में चल रहे आतंकविरोधी अभियान में सहयोग कर रहे है , अच्छी बात है , पर इस मामले में हमें उसका पिछलग्गू बनकर नहीं बनना चाहिए। इसकी बजाय हमें अपने दीर्घकालीन हितों के प्रति सचेत रहना चाहिए। हमें आतंकवाद से कैसे निपटना है- इसके लिए स्वतंत्र रणनीति अपनानी होगी . हमारी समस्या बिल्कुल अलग है अतः इसका समाधान भी अलग तरीके से ही होगा ।
निश्चित ही पाकिस्तान में पनप रहा आतंकवाद भारत और शेष दुनिया के लिए चिंता का विषय है, पर यह भी ध्यान में रखें कि यह तो पाकिस्तान में अमन-शांति चाहने वाले लोगों और वहां की लोकतांत्रिक ताकतों के लिए भी एक बड़ा खतरा है। वहां के अधिकाँश लोग और लोकतांत्रिक संगठन आतंकवाद की बढ़ती ताकत पर रोक चाहते हैं। वहां की लोकतांत्रिक ताकतें फाटा क्षेत्र, उत्तर पूर्वी सीमा प्रांत के कुछ इलाकों और स्वात घाटी पर तालिबान के बढ़ते नियंत्रण से बहुत चिंतित हैं। ऐसे में भारत वहां पर लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को बढावा देने में सहयोग कर सकता है । यह भी याद रखना होगा की अगर तालिबान का प्रसार पकिस्तान में होता है तो कश्मीर में भी उनकी उपस्थिति से इनकार नही किया जा सकता है । यह एक घातक स्थिति होगी । हमें पहले ही तैयार रहना चाहिए ।
भारत को अपनी सुरक्षा को मजबूत बनाते हुए आतंकवाद से निपटना ही होगा, पर साथ ही यह कोशिश करनी होगी कि पाकिस्तान के अंदर दहशतगर्द पर लगाम लगाने का जो मैकनिज़म है, वह भी मजबूत हो। गौर करने वाली बात यह है कि कोई भी आतंकी घटना होने पर भारत से जब भड़काऊ पाकिस्तान-विरोधी बयान जारी होता है, तो इससे पाकिस्तान की कट्टरवादी, आतंकवादी ताकतें मजबूत होती हैं और अमन-पसंद शक्तियां कमजोर पड़ती हैं। भारत के बयान पाकिस्तान विरोधी न होकर वहां पनप रहे आतंकवाद पर चोट करने वाले होने चाहिए। ये बयान स्पष्टत: आतंकवाद और उससे होने वाली क्षति पर केंदित होने चाहिए।
भारत को इस बारे में अभियान जरूर चलाना चाहिए कि पाकिस्तान के आतंकवादियों, कट्टरपंथियों और तालिबानी तत्वों से भारत समेत पूरे विश्व को कितना गंभीर खतरा है, पर यह अभियान पाकविरोधी न होकर। पाकिस्तान से पोषित आतंकवाद का विरोधी होना चाहिए। इन तरह के अभियानों का फर्क समझना बहुत जरूरी है। पाकिस्तान के अंदर से संचालित हो रहे आतंकवाद के विरोध में अभियान चलाते या कोई बयान देते समय पाकिस्तान की आम जनता और लोकतांत्रिक ताकतों को यह अहसास नहीं होना चाहिए कि हम उन्हें घेर रहे हैं। अपितु उन्हें यह महसूस होना चाहिए कि दहशतगर्द के खिलाफ उनके संघर्ष में भारत उनके साथ है। हमारी यह सोच पाकिस्तान के मीडिया के माध्यम से वहां के लोगों तक पहुंचनी चाहिए।
भारत चूंकि दक्षिण एशिया का एक अहम व असरदार मुल्क है, इसलिए इस देश की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह विश्व के विभिन्न मंचों से दहशतगर्द और कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों व संगठनों को मजबूत करने में मदद दे। उनके ऐसे विरोध को बुलंद करने वाली जमीन तैयार करे। खास तौर से भारत और पाकिस्तान के अमन-पसंद लोगों के मेलजोल के मौकों को बढ़ानाए। ऐसी कोशिशों से ही दक्षिण एशिया में सांप्रदायिक सद्भाव का माहौल बनेगा। यह कोशिश भी पूरे जोर से की जानी चाहिए कि आतंकवादियों और कट्टरपंथी ताकतों द्वारा गुमराह युवा अगर अमन की राह पर लौटना चाहें, तो उनके परिवार के सहयोग से उनके पुनर्वास के प्रयास हों।
भारत के अंदर भी कुछ ऐसे लोग और ताकतें मौजूद हैं, जो धर्म को कट्टरपंथी हिंसा की राह पर ले जाना चाहती हैं। अगर हम पूरी दुनिया में पाकिस्तान पोषित आतंकवाद का मुद्दा उठा रहे हैं और उसके खिलाफ अभियान चलाना चाहते हैं, तो यह भी जरूर है कि अपने घर के भी इन कट्टरपंथी हिंसक तत्वों के विरुद्ध कड़े कदम उठाएं, ताकि हमारी कथनी और करनी में कोई फर्क न नजर आए। इन उपायों को आजमाने से पाकिस्तान पोषित आतंकवाद पर निश्चित रूप से लगाम लगेगी। इस क्षेत्र में लंबे समय तक शांति-स्थिरता कायम रह सकेगी। अगर हमारी कथनी और करनी में फर्क होता है तो आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई कमजोर हो जायेगी । आतंरिक अशांति को नियंत्रित कर ही हम बाह्य आतंकवाद पर लगाम लगा सकते है ।
अमेरिका और आतंकवाद
आईएसआई आतंकवादियों को संरक्षण और बढ़ावा दे रही है, लेकिन अमेरिका ने इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया। वह इस बात पर गौर करने के लिए भी तैयार नहीं है कि आतंकवाद को रोकने के लिए पाकिस्तान को वित्तीय और सैन्य सहायता उपलब्ध कराए जाने के बावजूद तालिबान की ताकत में बढ़ोतरी हुई है। पाकिस्तान को उसके हुक्मरानों की दोहरी नीति की कीमत चुकानी पड़ रही है। इसी दोहरे रवैये ने आज ऐसी हालत पैदा कर दी है कि पाकिस्तान की सत्ता आतंकवादियों के सामने इस कदर असहाय नजर आती है। इस तेजी से फैल रही आग पर काबू पाने के लिए वहां के राजनीतिक नेतृत्व को अपनी दुविधा से उबरना होगा। भारत और पाक दोनों मिलकर आतंकवाद से निबट सकते है , पर ऐसा शायद ही हो । अमेरिका को भी अपना वह चश्मा बदलना होगा जिससे उसे आतंकवाद सिर्फ दुनिया के उसी हिस्से में नजर आता है, जहां उसके सैनिक घिरे होते हैं।शुरू में लगा था की ओबामा की निति पाक के मामले में अलग होगी लेकिन बाद में वह भी उसी निति पर चल पड़ा है जिस पर चल कर बुश सबसे अलोकप्रिय रास्त्रपति हो गया और उसे जुत्तें तक खाना पड़ा । ओबामा भी बिना सोचे समझे पाक को आर्थिक मदद दे रहा है , यह पैसा आतंकिओं के पास जरुर जाएगा और फ़िर अमेरिका के साथ साथ हमें भी इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी । सिर्फ़ पैसे बाँट देने आतंक का खत्म संभव होता तो बहुत पहले ही ऐसा हो चुका होता । अफ्शोश अमेरिका समझते हुए भी नासमझ बना हुआ है । अमेरिका चाहता है कि अल कायदा के खिलाफ अभियान में उन्हें पाकिस्तान का सहयोग मिलता रहे, लेकिन उसका ध्यान इस बात पर नहीं है कि तालिबानी अब लश्करे तैयबा जैसे संगठनों के जरिए दहशतगर्दी फैला रहे हैं। उन पर रोक की ओबामा के पास कोई खास योजना नहीं है। जो की एक दिन नासूर बन सकता है और उसकी आंच भारत पर भी पड़ेगा ।
Sunday, April 5, 2009
आज की राजनीति ..एक गन्दा व्यवसाय
आज की राजनीति ... घिन आती है । कोई विचारधारा नही , कोई मकसद नही .... सेवा न होकर गन्दा व्यवसाय हो गया है । साफ़ सुथरा व्यवसाय होता तो भी ठीक था । सेवा की बात तो करना बेमानी है । यह गन्दा व्यवसाय है जिसमे लेन देन का कोई नियम नही । केवल लूट खसोट है ... बेईमानी है । यही कारण है की घिन आती है । लोग कहते है की युवाओं को आगे आना चाहिए ...बिल्कुल आगे आना चाहिए । केवल युवा ही क्यों , हर अच्छे आदमी को आना चाहिए । अफ्शोश वहां कोई सेलेक्सन का प्रोशेष तो है नही । किसी भी बाहरी आदमी को अछूत समझा जाता है । उन्हें हटाने के लिए किसी हद तक हमारे आदरणीय नेता जा सकते है ।
न तो आदर्श है, न सोच है, न उसूल हैं और न ही कोई विचारधारा है। जो अजेंडा चुनाव से पहले जितने जोर-शोर से प्रचारित किया जाता है, चुनाव के बाद उसका कहीं नामोनिशान नहीं मिलता। चुनाव से पहले तमाम वादे किए जाते हैं। लोगों की समस्याओं को खत्म करने के इरादे जाहिर किए जाते हैं। लेकिन वोट पड़ने के बाद ये सब हवा हो जाते हैं। लोगों को मुसीबतों से मुक्ति नहीं मिलती। समस्याएं जस की तस बनी रहती हैं। वैसे तो इन्फ्रास्ट्रक्चर की बात होनी चाहिए, शिक्षा की बात होनी चाहिए, ऊर्जा की बात होनी चाहिए, स्वास्थ्य की बात होनी चाहिए, गरीबी की बात होनी चाहिए.....होती भी है केवल एक महीने भाषणों में ........
न तो आदर्श है, न सोच है, न उसूल हैं और न ही कोई विचारधारा है। जो अजेंडा चुनाव से पहले जितने जोर-शोर से प्रचारित किया जाता है, चुनाव के बाद उसका कहीं नामोनिशान नहीं मिलता। चुनाव से पहले तमाम वादे किए जाते हैं। लोगों की समस्याओं को खत्म करने के इरादे जाहिर किए जाते हैं। लेकिन वोट पड़ने के बाद ये सब हवा हो जाते हैं। लोगों को मुसीबतों से मुक्ति नहीं मिलती। समस्याएं जस की तस बनी रहती हैं। वैसे तो इन्फ्रास्ट्रक्चर की बात होनी चाहिए, शिक्षा की बात होनी चाहिए, ऊर्जा की बात होनी चाहिए, स्वास्थ्य की बात होनी चाहिए, गरीबी की बात होनी चाहिए.....होती भी है केवल एक महीने भाषणों में ........
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