Thursday, February 17, 2011

मिट्टी की सुगंध....

अपनी मिटटी के लिए तड़प 
 क्या होती है ?
 बिछड़ने के बाद जान पाए
  उन्हें सलाम, जो वही रहे 
 हम तो भाई नकली हो गए
 उन हवाओं को सलाम 
 जो उस मिटटी को छू कर आये 
  इन हवाओं में वह खुशबू कहाँ !
 ये तो दूषित और नकली है 
 उस मिटटी के सीने से ,
 लगने का मन कर रहा 
 अब जाकर जान पाए 

Wednesday, February 16, 2011

रिबोसोम..

रिबोसोम नाम रिबोन्यूक्लिइक एसिड और ग्रीक शब्द सोमा अर्थात शरीर के मेल से बना है। यह कण कोषिका के डीएनए को पढ़ता है और उसमें निहित आनुवंशिक सूचनाओं के अनुसार शरीर के अनगिनत प्रोटीन बनाता है। दूसरे शब्दों में वह हमारे शरीर की संरचना और रासायनिक स्तर पर इस संरचना के नियंत्रण का काम करता है। वह डीएनए के रूप में लिखे आनुवंशिक कोड को समझ कर उसे न्यूक्लिइक ऐसिड में बदलता है। इसे ट्रांसलेशन यानी अनुवाद क्रिया कहते हैं। साथ ही वह अलग-अलग अमाइनो ऐसिड़ों को जोड़ कर तथाकथित पॉलीपेप्टाइड कड़ियां बनाता है और संदेशवाही आरएनए की सहायता से उन्हें सही-सही क्रमबद्ध करता है।

Monday, February 14, 2011

'कोलोनियल मोर्देनाइजेसन एंड गाँधी ''

शैल घोष ने गाँधी के ऊपर ''कोलोनियल मोर्देनाइजेसन एंड गाँधी '' नामक एक किताब लिखा है इसमे उन्होंने लिखा है कि गांधी की विचारधारा भारतीय राष्ट्रीयता को समझने के लिए एक प्रस्थान बिंदु है। गांधी के परिदृश्य में आने के बाद ही भारतीय राष्ट्रीयता आंदोलन में वे लोग भी शामिल हुए जो पहले समाज में हाशिए पर थे। इससे भारतीय राष्ट्रवाद का दायरा विस्तृत हुआ। इस राष्ट्रवाद की जड़ें पश्चिम में नहीं थीं, लेकिन ऐसा भी नहीं था कि इसमें उपनिवेशवाद की कोई भूमिका नहीं थी।गांधी को उभारने में उपनिवेशवाद का अपना अलग रोल रहा था । आधुनिकता के कोई एक मायने नहीं हैं और समय बदलने के साथ इसके मायने भी बदल जाते है । औपनिवेशिक ताकतों ने राष्ट्रवादी रोष को कम करने के लिए गांधी की आलोचनाओं का सर्वाधिक रचनात्मक उत्तर भी दिया। इसलिए औपनिवेशिक आधुनिकता को भारतीय राष्ट्रवाद के परिप्रेक्ष्य में देखा-समझा जाना चाहिए, जो अपनी भारतीय विशेषताओं के साथ विकसित जरूर हो रही थी, पर इसके बावजूद वह राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने की पश्चिमी विचारधारा के खिलाफ नहीं थी। यह सही है की उपनिवेशवाद ने गांधी जैसे लोगों को बढ़ने में सहायता की पर इनकी काबिलियत और दूरदृष्टि ने इतना फेमस बनाया । आतंरिक शक्ति ने ही उपनिवेशवाद से लड़ने के लिए शक्ति प्रदान की ।

Friday, February 11, 2011

गुडिया ........

पत्थर पर लेटी हुई गुडिया , जिंदगी की कहानी बयान करती है । हम कोमल समझते है । वो पत्थर को भी मात दे देती है । हम उसे फूलों की सेज समझ बैठते है । वो हमें दिन में ही तारें दिखला देती है ।

Wednesday, February 9, 2011

बलबन

बलवन दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था जिसने राजत्व की संकल्पना की और लूई चौदहवें की भांति राज्य को एक गंभीर पेशा बनाया . अलाउद्दीन  खिलजी ने उसके राजत्व की संकल्पना में बदलाव कर उसे नया रूप दिया .उसने बलवन से रक्त और लौह की निति को ग्रहण किया जबकि तुर्की नस्लवाद को छोड़ दिया .उसने जलालुद्दीन खिलजी की परोपकारिता की निति को भी त्याग दिया जबकि धर्मनिरपेक्ष तत्वों को अपनाया .बलवन अपने को व्यक्तिगत बलवन से शासक बलवन के रूप में ढाल लिया .एक तरफ जहाँ उसने तुर्की नस्लवाद को बढ़ावा दिया वहीँ दूसरी तरफ उसने अपने तुर्की विरोधियों को इस क्रूरता के साथ कुचला की भारत में तुर्की नस्ल का पराभव हो गया .वह मंगोलों से निपटने में भी पूरी तरह सक्षम नहीं हुआ ,उसके समय में दिल्ली सल्तनत की सीमा सिन्धु नदी से सिकुड़ कर व्यास नदी तक रह गयी .सुलतान के महत्व को प्रदर्शित करने के लिए उसने कुछ गैर इस्लामिक प्रथाओं को भी बढ़ावा दिया जैसे नौरोज ,सिजदा पैबोस आदि .
बलवन ने सुलतान की गरिमा को बढाने में जरुर सफल हुआ .उसने नए क्षेत्रों को जितने पर ध्यान न देकर आंतरिक व्यवस्था और अपने क्षेत्रों को सुरक्षित बनाने पर ही ध्यान दिया जो समय की मांग भी थी .  वह पहला शासक था जिसने राज्य को गंभीर पेशा बनाया और राजत्व की संकल्पना की .

Tuesday, February 8, 2011

खुला गगन सबके लिए है........

उजाले को पी अपने को उर्जावान बना
भटके लोगो को सही रास्ता दीखा
उदास होकर तुझे जिंदगी को नही जीना
खुला गगन सबके लिए है , कभी मायूश न होना
तुम अच्छे हो, खुदा की इस बात को सदा याद रखना