शैल घोष ने गाँधी के ऊपर ''कोलोनियल मोर्देनाइजेसन एंड गाँधी '' नामक एक किताब लिखा है इसमे उन्होंने लिखा है कि गांधी की विचारधारा भारतीय राष्ट्रीयता को समझने के लिए एक प्रस्थान बिंदु है। गांधी के परिदृश्य में आने के बाद ही भारतीय राष्ट्रीयता आंदोलन में वे लोग भी शामिल हुए जो पहले समाज में हाशिए पर थे। इससे भारतीय राष्ट्रवाद का दायरा विस्तृत हुआ। इस राष्ट्रवाद की जड़ें पश्चिम में नहीं थीं, लेकिन ऐसा भी नहीं था कि इसमें उपनिवेशवाद की कोई भूमिका नहीं थी।गांधी को उभारने में उपनिवेशवाद का अपना अलग रोल रहा था । आधुनिकता के कोई एक मायने नहीं हैं और समय बदलने के साथ इसके मायने भी बदल जाते है । औपनिवेशिक ताकतों ने राष्ट्रवादी रोष को कम करने के लिए गांधी की आलोचनाओं का सर्वाधिक रचनात्मक उत्तर भी दिया। इसलिए औपनिवेशिक आधुनिकता को भारतीय राष्ट्रवाद के परिप्रेक्ष्य में देखा-समझा जाना चाहिए, जो अपनी भारतीय विशेषताओं के साथ विकसित जरूर हो रही थी, पर इसके बावजूद वह राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने की पश्चिमी विचारधारा के खिलाफ नहीं थी। यह सही है की उपनिवेशवाद ने गांधी जैसे लोगों को बढ़ने में सहायता की पर इनकी काबिलियत और दूरदृष्टि ने इतना फेमस बनाया । आतंरिक शक्ति ने ही उपनिवेशवाद से लड़ने के लिए शक्ति प्रदान की ।