पाकिस्तान में आतंकवाद का एक इतिहास रहा है . सोवियत संघ    सेना ने जिन     दिनों    अफगानिस्तान    में नाजायज    घुसपैठ कर रखी    थी, उन्हीं     दिनों में    पाकिस्तान    में लड़ाकू और    कट्टरवादी    संगठनों का     सबसे ज्यादा    विस्तार हुआ    था। इसमें    पाकिस्तान,    अमेरिका व     सऊदी अरब की    बहुत नजदीकी    साझेदारी रही    थी। इसी दौरान    अमेरिका  और    पाकिस्तान के    मुख्य    गुप्तचर    संगठनों    (सीआईए और     आईएसआई) में    इतने करीबी    रिश्ते बन गए,    जो बाद में भी    कई     अप्रत्याशित    रूपों में    सामने    आए।  
बाद में    पश्चिमी     देशों ने जहां    अपने लिए    ख़तरनाक    सिद्ध होने    वाले     आतंकवादियों    की धरपकड़ के    लिए    पाकिस्तान पर    बहुत जोर    बनाया,  वहीं    भारत के लिए    खतरनाक माने    जाने वाले    आतंकवादी    संगठनों  के    खिलाफ    कार्रवाई पर     कम ध्यान    दिया। इसी    कारण अमेरिका     के नेतृत्व    में आतंकवाद    विरोधी युद्ध    तेज हुआ, पर    भारत के  खिलाफ    पाकिस्तान की    धरती से    आतंकवादी    वारदातों का    सिलसिला  शुरू    हो गया।   यह अमेरिका और पश्चिमी देशों की दोमुहीं निति थी जिसका  खामियाजा आज भारत भुगत रहा है ।
आज हम  अमेरिकी    नेतृत्व में     चल रहे    आतंकविरोधी    अभियान में    सहयोग कर रहे है , अच्छी बात है ,  पर    इस मामले में    हमें उसका    पिछलग्गू बनकर    नहीं बनना    चाहिए।  इसकी    बजाय हमें    अपने दीर्घकालीन    हितों के    प्रति सचेत    रहना  चाहिए।    हमें आतंकवाद    से कैसे    निपटना है-    इसके लिए    स्वतंत्र     रणनीति अपनानी  होगी  . हमारी समस्या बिल्कुल अलग है अतः  इसका समाधान  भी अलग तरीके से ही होगा ।
निश्चित    ही पाकिस्तान    में पनप  रहा    आतंकवाद भारत    और शेष दुनिया    के लिए चिंता    का विषय है, पर     यह भी ध्यान    में रखें कि यह    तो पाकिस्तान    में अमन-शांति     चाहने वाले    लोगों और वहां    की    लोकतांत्रिक    ताकतों के लिए    भी  एक बड़ा    खतरा है। वहां    के अधिकाँश  लोग    और    लोकतांत्रिक     संगठन    आतंकवाद  की    बढ़ती ताकत पर    रोक चाहते    हैं। वहां की     लोकतांत्रिक    ताकतें फाटा    क्षेत्र,    उत्तर पूर्वी    सीमा प्रांत     के कुछ इलाकों    और स्वात घाटी    पर तालिबान के    बढ़ते    नियंत्रण से     बहुत चिंतित    हैं। ऐसे में भारत वहां पर लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को  बढावा देने में सहयोग कर सकता है । यह भी याद रखना होगा की अगर तालिबान का  प्रसार पकिस्तान में होता है तो कश्मीर में भी उनकी उपस्थिति से इनकार नही  किया जा सकता है । यह एक घातक स्थिति होगी । हमें पहले ही तैयार रहना चाहिए  ।
भारत    को अपनी    सुरक्षा को    मजबूत बनाते    हुए आतंकवाद     से निपटना ही    होगा, पर साथ    ही यह कोशिश    करनी होगी कि     पाकिस्तान के    अंदर    दहशतगर्द पर    लगाम लगाने का    जो मैकनिज़म     है, वह भी    मजबूत हो। गौर    करने वाली बात    यह है कि कोई    भी आतंकी  घटना    होने पर भारत    से जब भड़काऊ    पाकिस्तान-विरोधी    बयान जारी     होता है, तो    इससे    पाकिस्तान की    कट्टरवादी,    आतंकवादी    ताकतें  मजबूत    होती हैं और    अमन-पसंद    शक्तियां    कमजोर पड़ती    हैं।  भारत के    बयान    पाकिस्तान    विरोधी न होकर    वहां पनप रहे    आतंकवाद  पर    चोट करने वाले    होने चाहिए।    ये बयान    स्पष्टत:    आतंकवाद और     उससे होने    वाली क्षति पर    केंदित होने    चाहिए।  
भारत     को इस बारे में    अभियान जरूर    चलाना चाहिए    कि पाकिस्तान    के     आतंकवादियों,    कट्टरपंथियों    और तालिबानी    तत्वों से    भारत समेत     पूरे विश्व को    कितना गंभीर    खतरा है, पर यह    अभियान    पाकविरोधी  न    होकर।    पाकिस्तान से    पोषित    आतंकवाद का    विरोधी होना     चाहिए। इन तरह    के अभियानों    का फर्क समझना    बहुत जरूरी    है।     पाकिस्तान के    अंदर से    संचालित हो    रहे आतंकवाद    के विरोध में     अभियान चलाते    या कोई बयान    देते समय    पाकिस्तान की    आम जनता और     लोकतांत्रिक    ताकतों को यह    अहसास नहीं    होना चाहिए कि    हम उन्हें  घेर    रहे हैं।    अपितु उन्हें    यह महसूस होना    चाहिए कि     दहशतगर्द के    खिलाफ उनके    संघर्ष में    भारत उनके साथ    है। हमारी यह     सोच    पाकिस्तान के    मीडिया के    माध्यम से    वहां के लोगों    तक  पहुंचनी    चाहिए।  
भारत    चूंकि दक्षिण    एशिया का एक     अहम व असरदार    मुल्क है,    इसलिए इस देश    की यह    जिम्मेदारी    बनती  है कि वह    विश्व के    विभिन्न    मंचों से    दहशतगर्द और    कट्टरपंथी     ताकतों के    खिलाफ आवाज    उठाने वाले    लोगों व    संगठनों को     मजबूत करने    में मदद दे।    उनके ऐसे    विरोध को    बुलंद करने    वाली  जमीन    तैयार करे।    खास तौर से    भारत और    पाकिस्तान के    अमन-पसंद     लोगों के    मेलजोल के    मौकों को    बढ़ानाए। ऐसी    कोशिशों से ही     दक्षिण एशिया    में    सांप्रदायिक    सद्भाव का    माहौल बनेगा।    यह  कोशिश भी    पूरे जोर से की    जानी चाहिए कि    आतंकवादियों    और  कट्टरपंथी    ताकतों    द्वारा    गुमराह युवा    अगर अमन की राह    पर  लौटना    चाहें, तो उनके    परिवार के    सहयोग से उनके    पुनर्वास के     प्रयास    हों।  
भारत के    अंदर भी कुछ    ऐसे लोग और     ताकतें मौजूद    हैं, जो धर्म    को कट्टरपंथी    हिंसा की राह    पर ले  जाना    चाहती हैं।    अगर हम पूरी    दुनिया में    पाकिस्तान    पोषित     आतंकवाद का    मुद्दा उठा    रहे हैं और    उसके खिलाफ    अभियान चलाना     चाहते हैं, तो    यह भी जरूर है    कि अपने घर के    भी इन    कट्टरपंथी     हिंसक तत्वों    के विरुद्ध    कड़े कदम    उठाएं, ताकि    हमारी कथनी और     करनी में कोई    फर्क न नजर आए।    इन उपायों को    आजमाने से     पाकिस्तान    पोषित    आतंकवाद पर    निश्चित रूप    से लगाम    लगेगी।  इस     क्षेत्र में    लंबे समय तक    शांति-स्थिरता    कायम रह    सकेगी। अगर  हमारी कथनी और करनी में फर्क होता है तो आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई कमजोर हो  जायेगी । आतंरिक अशांति को नियंत्रित कर ही हम बाह्य आतंकवाद पर लगाम लगा   सकते है .