अपनी मिटटी के लिए तड़प
क्या होती है ?
बिछड़ने के बाद जान पाए
उन्हें सलाम, जो वही रहे
हम तो भाई नकली हो गए
उन हवाओं को सलाम
जो उस मिटटी को छू कर आये
इन हवाओं में वह खुशबू कहाँ !
ये तो दूषित और नकली है
उस मिटटी के सीने से ,
लगने का मन कर रहा
अब जाकर जान पाए
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