एक ज़माना था . वह हिन्दी फ़िल्म संगीत का स्वर्ण युग कहा जाता था . उस जमाने में फिल्म के गीत उसकी कहानी के मुताबिक चलते थे। हर गाने के लिए कहानी में एक सिचुएशन होती थी। इन्हीं सिचुएशनल गानों की वजह से लोग इन्हें अपने से जोड़ पाते थे। मगर आज वह बात नही दिखती जबरदस्ती ठुसा जाता है , गाने हाइप के आधार पर चलते है । करोडो फुका जाता है , तब भी कुछ ही दिनों के बाद वे जबान और दिमाग दोनों से उतर जाते है । संगीत कारों को पहले जैसी आजादी नही मिलती । बाजार का काफी दबाव है । उनकी रचनात्मकता मारी जाती है । फूहड़ संगीत तो आज आम हो गए है । कुछ गानों के न तो बोल समझ आते है और न ही थीम ।
पुराने गानों को सदाबहार गाने यों ही नहीं कहा जाता।उनमे वो बात है जो आज के गानों में नही दिखती । उन्हें बार बार सुनने का मन करता है । ऐसा नही है की आज अच्छे गाने नही बनते , आज भी अच्छे गाने है पर उनकी तादाद बहुत ही कम है ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
bilkul yathart
saty
Post a Comment